KUMAR SAMBHAV   (कुमारसंभव सिंह)
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Explorer... researcher...mathematician
Joined 10 May 2018


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12 JUL 2023 AT 0:04

हर रोज़ सुबह एक ख़्वाब ले आती है
मैं ना भी सोचूँ तो भी तेरे याद ले आती है
कोशिशें तो बहुत करते है कि कुछ फ़रियाद कर ले आपसे
मगर इन मग़रूर आँखो से ही मेरी फ़रियाद पूरी हो जाती है
चाहता हूँ हाथ पकड़ कर तुम्हारा, साथ चलूँ इन राहों पर
मगर ये धड़कन तुम्हारे साथ अपने आप चलने लग जाती है
इक रोज़ चाहता हूँ जगाऊँ तुम्हें बाहों में भरके मगर
उफ़्फ़ , ये ज़ुल्फ़ें मुझे तेरे सपने में खींचे लिए जाती है
इक रोज़ मिलना होगा तुमसे तो बयान करेंगे हाले दिल अपना
तब तक इस दिल में उठे तूफ़ानो को रोक लिए जाते है
रहो हर दिन तुम मुस्कुराती हुई हर राह गुनगुनाती हुई
हर मंदिर मस्जिद क़ाबे में यही दुआ की जाती है
तेरे दीदार के सजदे में वक़्त यूँ ही गुज़र जाता
पर तेरे आने पे मौसिकी ही मौसिकी छा जाती ...

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15 OCT 2021 AT 14:27

वो शाम की तरह कुछ यूँ गुज़र गया…
की मेरे लिखे शब्दों पर स्याही गिरा दी हो।।

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14 MAY 2021 AT 23:00

कभी कभी रिश्तों का संतुलन वाली डोर को थामे
आप इतने मगन हो जाते हो की
आप भूल जाते हो कि सामने वाले ने कब डोर छोड़ दी
आप रिश्तों ज़मीन पर औंधे मुहँ गिर जाते हो ....

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20 NOV 2020 AT 14:38

हाँ तो खेल लिया मेरे साथ,
किए थे जो वादे कर दिया उन्हें झूठा
चलना था अभी तो बहुत दूर, राह अकेला छोड़ दिया
कहा जाना था, मंज़िल क्या थी सोचा ही नहीं
बस हाथ पकड़े चला जा रहा था
उस बच्चे की तरह जो माँ का आँचल पकड़े चलता है
कह तो दिया नहीं मिलेंगे, पर जो मिले तो क्या
कहा नज़रें छुपाओगे, कैसे सामने से गुजर जाओगे
आंसू तो ना आने दूँगा आँखों में, दिल रोया तो ना रोक पाऊँगा
चला भी जाऊँगा तुमसे दूर, पर बिन तेरे जी ना पाऊँगा।
लौट आओगे अगर फिर पाने तुम
लिखे हुए अक्षर समन्दर की लहरों में बेह जाते हैं
तुम पाना भी चाहोगी तो, छूटी रेत समेट ना पाओगी।।

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4 AUG 2020 AT 13:19

ज़िंदगी में एक बात याद रखो अगर किसी भी बात को आप अपने माँ-बाप, भाई- बहन, या किसी अपने से छिपा के कर कर रहे हो.. तो मेरे दोस्त वो काम ग़लत कर रहे हो तुम...
वक्त रहते संभल जाओ, देर ना हो जाए🙏🏻

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17 OCT 2019 AT 11:32

कि कुछ यूँ डूबा तेरी आँखो में की ख़ुदको निकाल ना सका
उलझा कुछ ऐसा तेरी ज़ुल्फ़ों में की सुलझा ना सका
तेरी हाथों में जो मेहंदी है आज उसकी महक आज पूरे अक्स्स में है
कि तेरी दीद को प्यासी इन ख़्वाहिशों को मैं समझा ना सका।

आजा इठला कर और आकर बाहों में भर ले मुझे
की कल का सूरज मैं ना भी देखूँ तो सुकून-ए-मोहब्बत में सो जाऊँ
वो ईद भी गुज़री, दशहेरा भी गुज़रा, है करवाचौथ आकर मिल तो सही
की है आने का इंतज़ार तुम्हारा, चाँद को मैं ये समझा ना सका।

की अब आ ही गये हो तो चलो चलें उस पार
चाँदनी जहाँ अपनी छटाएँ बिखेरती है
मिलें है सौ जन्मों एक बार की हो संग इक्क दूजे के
हो जाए व्रत पूरा उसका मेरे दीदार से, चाँद को मैं ये समझा ना ।

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30 MAR 2019 AT 13:29

क़तरा क़तरा वो ख़ून का कुछ यूँ बहाता रहा

तेरे हर मुस्कान में वो ख़ुद को लुटाता रहा

शाम-ए-मोहब्बत, गली में बन बैठा फ़क़ीर

की तेरे शहर में एक दीवाना ऐसा भी था।

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16 DEC 2018 AT 2:12

यूँ तो हर लम्हे में मैंने ख़ुद को खोके पाया है
जो चला गया था दूर, आज फिर लौट के आया है
मौसमे-ए- वक़्त की तामीरदारी तो देखो
जो कल मेरा था आज वो तेरी साँसों का सरमाया है
चलते चलते बस ....कमबख़्त
ये वक़्त भी किस मुक़ाम पर ले आया है
एक बात जान लो आज....
क्या कभी कुआँ ..समुन्दर समेट पाया है...

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5 SEP 2018 AT 23:58

तेरे पंखो में उड़ने की वो आग अभी बाक़ी है

सपनो का पूरा होता वो भाग अभी बाक़ी है

तुझे बिखेर दिया अरमानो ने तेरे पर

समय की धुन से अलग तेरा राग अभी बाक़ी है।

धुले चहरे पे तेरे जमी धूल अभी बाक़ी है

हँसती आँखो के पीछे चुभते वो शूल अभी बाक़ी है

तोड़ा उसे इस क़दर की वो संभल ना सकी पर

जमी हुई उस डाली पे बसंत के फूल अभी बाक़ी है।

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26 AUG 2018 AT 18:04

कुछ पल को अपनी ज़िंदगी रोक लेता हूँ मैं,
उस राह पे जाने से पहले कुछ सोच लेता हूँ मैं,
हूँ राही तो होगी मेरी भी कोई मंज़िल
रेत से पटी भूमि पर भी पुष्पों के बीज बो लेता हूँ मैं।

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