Kumar Mohit   (कुमार मोहित)
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Joined 28 April 2017


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Joined 28 April 2017
21 JUN 2020 AT 11:49

परस्पर प्रेम पनपा जब,
पिता और पुत्र-पुत्री में,
प्रभु ने प्रेम पल्लव तब,
ढ़का पतले से पर्दे में ।

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2 APR 2020 AT 22:31

अनुशासन से कर शासन वो,
जग में पूजित हो जाते हैं,
हैं राम सकल पौरुष का दंभ,
वनवास सहज सह जाते हैं।

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1 APR 2020 AT 7:34

शहर जब डूब जाता है,
तो बस इतना बताता है,


(पूरी कविता अनुशीर्षक, कैप्शन में पढ़िए)

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26 FEB 2020 AT 19:12

वक़्त बिखरे रेत सा,
हम कैद कर ना पाएंगे,
दिन बुरे हैं आज पर,
कल तो अच्छे आएंगे ।।

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11 FEB 2020 AT 9:06

मेरे हिस्से की कच्ची धूप,
को तुम सेंतते रहना,
मैं आती हूं अभी जाकर,
मुझे तुम देखते रहना,

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1 DEC 2019 AT 11:10

Kumar Mohit

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30 SEP 2019 AT 21:23

पूरी कविता अनुशीर्षक (कैप्शन) में पढ़ें।

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27 SEP 2019 AT 8:12

चिरागों को मयस्सर है,
अभी वो आखरी "रेशा",
कि जिसका साथ लेकर वो,
अंधेरा काट लेंगे।

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26 SEP 2019 AT 0:06

सफर में साथ इतना हो,
कि "मुश्किल" भी कटे संग में,
जो मंज़िल दूर हो थोड़ी,
तो "दोनों" ही थकें संग में।

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13 SEP 2019 AT 12:30

-कु.मो

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