20 JUL 2018 AT 1:33

विध्वंसकारी हो जाता हूं अक्सर मैं,
जब तजुर्बों को अहमियत नही देता...

सोचता हूँ, कुछ व्यर्थ अल्फ़ाज़ों से जैसे बना हूं मैं
मरण तो कबका हो चुका, जैसे खुद के खून से सना हूं में

शोर गूँजता है उस तंग सन्नाटे में भी
तन्हाई से अक्सर तजुर्बों की बात करने लगता हूँ ।

इतना सब कुछ तजुर्बों का हिस्सा है कि
विध्वंसकारी हो जाता हूं अक्सर मैं,
जब तजुर्बों को अहमियत नही देता...

- Secluded Nomad