बहुत डर डर कर तेरी शकल देखता हूं ,
काश ! तेरा कोई भाई , बाप ना होता !
तू कहां इंसानों की सूरत में आ गई है !
कुछ ना भी होता तो खुदा , तेरा शौहर होता !
मैं मौत भी नहीं मांग सकता हूं , सनम !
सुना है कि , तेरे मजहब में , मौत के बाद फिर कोई जन्म नहीं होता !
अमीरों की बस्ती में घर लेना है मुझे !
जहां मुहब्बत ना सही , जिस्मों का क़िस्त तो आसान होता !
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