कुमार महोबी   (Kumar Mahobi)
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A teacher, amateur poet, author and blogger...
Joined 19 January 2018


A teacher, amateur poet, author and blogger...
Joined 19 January 2018
21 SEP 2024 AT 15:15

किसने सोचा था कि पूरी दिल की आरज़ू हो जाएगी,
एक अजनबी से इस तरह एक दिन गुफ़्तुगू हो जाएगी।
बदल जाएंगी सब दूरियां नज़दीकियों में कुछ इस तरह,
कि पहले होंगे आप से तुम, फिर तुम से तू हो जाएगी॥

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Life doesn't always follow our schedule; everything unfolds in its own time. The most beautiful moments often arrive unexpectedly, reminding us that life is a cycle. While someone else may be longing for what you have, you're likely waiting for something else. Some chapters need to be closed for a new book to begin. Embrace the journey, because every stop along the way is part of a bigger plan, leading you toward what’s meant to be......

~Miss Sania

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31 JUL 2024 AT 19:16

तुझसे राब्ते की बातें, ख़ुद से भी नहीं कहना मुझे,
ये दर्द-ए-तर्क-ए-निस्बत अब और नहीं सहना मुझे।
दोस्ती-मोहब्बत-दोस्ती कब तक इस वसवसे में रहूँ,
ए दोस्त! अब तेरा दोस्त बनकर भी नहीं रहना मुझे।

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18 JUL 2024 AT 23:15

तेरे साथ गुज़ारे उन लम्हों से ख़ुद को दो-चार करता हूं,
जो तुमसे कहनी थी वो ख़ुद से सारी बातें यार करता हूं।
अब तेरे दिल की तू ही जाने मुझे तो बस ख़बर इतनी है,
मैं कल भी तुझे प्यार करता था, आज भी प्यार करता हूं॥

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जितने लम्हे वारने थे तुम पर, उतने वार चुके हम,
कभी नज़र उतारी, आज नज़रों से उतार चुके हम।
कि चलते है ख़ाली दिल और बे-आबरू से होकर,
तेरे कू में जितने दिन गुज़ारने थे, गुज़ार चुके हम॥

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तुझको आया ही नहीं, चाहने का हुनर जानां,
तूने जानी ही नहीं, मोहब्बत की क़दर जानां।
मैंने तो चाहा था तू मेरे दिल में उतर जाए,
मगर तुझको रास आया दिल से उतर जाना॥

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22 MAY 2024 AT 21:49

अब वो अपना सिर मेरे शाने नहीं रखता,
बाद उसके अब कुछ मायने नहीं रखता।
मुझे तन्हाई पसंदगी आ गई है इस तरह,
अब मैं अपने घर में आईने नहीं रखता॥

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सम्भालो अपनी याद को, शाम-ओ-सहर आती है,
अब तो आईने में भी तेरी ही सूरत नज़र आती है।
मैं तो देखता नहीं दानिस्ता लेकिन नज़र ही तो है,
एक बार तुम पर पड़ती है तो बस ठहर जाती है॥

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माना कि इन दिनों क़लम चलाना छोड़ दिया,
ऐसा नहीं कि तेरी यादों ने आना छोड़ दिया।

तौहीन होगी तुम्हारी मैख़ाने सी आँखों की,
बस यही सोचकर हमने पैमाना छोड़ दिया।

मेरी मुसलसल कोशिश है कि पूरा हो जाए,
तुमने जो इश्क़ का अधूरा फ़साना छोड़ दिया।

एक रोज़ गए तुम ख़ाना-ए-दिल को छोड़कर,
बाद उसके हमने भी सारा ज़माना छोड़ दिया।

उस पर जो गुज़री है वो सिर्फ गली जानती है,
जहाँ से तुमने बस आना-जाना छोड़ दिया।

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मेरे तमाम सियाह ज़ख्मों के चारा-गर लगते हो,
मुझे मुझसे मिलाने वाली रहगुज़र लगते हो।
जब तुम्हें देखता हूँ तो मुझे माँ की याद आती है,
तुम मुझे सुकून लगते हो, तुम मुझे घर लगते हो॥

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