अच्छा लिखना ही शानदार नहीं होता साहब
पढ़ने वाले भी शानदार होने चाहिए।-
हमने वहां भी सिर्फ़ आपको मांगा था ,
जहां लोग अपनी खुशियों की मन्नते मांगा करते है।-
तुम asspirant हो ssc की, मै हूं je का छात्र प्रिए,
तुम तो सोने की बर्तन हो, मै हूं मिट्टी का पात्र प्रिए,
तुम भागती जैसे मेल हो,मै सड़क किनारे का भेल प्रिए,
तुम सरपट भागती मेट्रो हो, मै थर थर कापता रेल प्रिए।।।।
कैसे होगा अपना मेल प्रिए....-
बार-बार पूछते हो, खुश हो न,
अरे यार खुश हूं, परेशान थोड़े हूं....
आधी रात को मदद मांगते हो,
इंसान हूं मैं, शैतान थोड़े हूं....
तुम हो काशी, हम हैं प्रयागराज,
उड़ के आ जाऊं! शक्तिमान थोड़े हूं....!
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मसहूर होकर भी अगर तुम गलत के खिलाफ ना बोले तो,,
मसहूर होना भी एक गाली है।।-
सजने सवरने की तुम्हे क्या जरूरत है,,,,,
क़यामत ढाने के लिए तुम्हारी सादगी ही काफी है।।।-
आसमान में काली घटा छाई हुई है ।
जरा कोई देख कर बताये,,
कहीं उसने अपने बाल तो खुले नहीं रखे।।-
एक ऐसे शख्स से किया था इश्क़ का इजहार,,,,
चाह कर भी उससे बोल नहीं सकता कि तुम्हारी याद इश्क़ की वजह से आ रही।।।।-
प्रयागराज वाली ज़िन्दगी हो तुम,,,
मन तो बहुत है साथ रहने का पर किस्मत नहीं।।।❤️ ❤️💔-