Krishna Kant Jain   (कृष्ण)
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Joined 22 May 2018


Joined 22 May 2018
31 AUG 2020 AT 15:36

Prashant Bhushan
before payment of fine







Prashant bhushan
after payment of fine

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31 AUG 2020 AT 15:29

Prashant Bhushan after paying fine in SC

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6 JUL 2020 AT 9:07

आँखे तेरी कातिल है, और उसपे काजल आय हाय।
चेहरा तेरा चांद का टुकड़ा और उसपे ज़ुल्फ़ें आय हाय।।

बातें तेरी मीठी छुरी, और उसपे हसना आय हाय।
गुस्सा तेरा वल्ला वल्ला, उसपे नखरे आय हाय।।

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28 MAY 2020 AT 18:29

CLAT Consortium showering sample questions

Me:

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28 MAY 2020 AT 18:23

My friend: Nya sample paper dekha CLAT ka

Me:

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7 MAR 2019 AT 19:34

कितने महखाने आबाद किये हैं इन आँखों से तूने ही,
सारे आशिक़ बर्बाद किये है इन आँखों से तूने ही।

फंसा अभी तक जो भी तेरे इन केशो में एक भी बार,
कोई न आजाद किया है, इन हाथों से तूने ही।

होंठ गुलाबी पंखुड़ियों से खिलते रहते जैसे ही,
भंवरो को मिलने न दिया है इन फूलों से तूने ही।

गर्दन जैसे एक सुराही, जैसे भरती पानी हो,
प्यासों को प्यासा ही रखा, तूने और बस तूने ही।

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23 FEB 2019 AT 20:02

सब कुछ तेरे आगे बौना है, मैं शब्दों की क्या संज्ञा दूँ।
एक अथाह सागर हो तुम, मैं पानी से क्या पूजा दूँ।

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7 FEB 2019 AT 22:26

मय की मयकशी को मैं क्या कोई शराब दूँ?
वो खुद एक गुलाब है मैं उसको क्या गुलाब दूं।

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2 FEB 2019 AT 11:33

कम नहीं तेरे दीवाने जो हर एक अदा पर मर जाएं।
हम तेरे साये के पुजारी हम उसी पर मर जाएं।

अधर कि जैसे कई गुलाब की पंखुड़ियों का पेहरा है।
पूनम का चांद भी शरमा जाए कुछ ऐसा ही चेहरा है।
काला रंग भी काला बोले इतने काले केश हैं वो।
गोरा रंग भी गोरा कह दे, इतना गोरा फेस है वो।
तेज़ वो इतना तेज की अच्छे अच्छों की नींदें उड़ जाएं
पर हम तेरे साये के पुजारी हम उसी पर मर जाएं।

चाल जो देखे, होके पानी पानी पानी बोले
हुस्न की कलियां भी फिर देखो नानी नानी बोलें।
हँसी देख ले तो कइयों की हृदयगति रुक जाती है।
ऊंचे ऊंचे पंछी की भी नज़र वहीं झुक जाती है।
मुस्कान भी उसकी देख जो ले वो खड़े खड़े मर जाए
पर हम तेरे साये के पुजारी हम उसी पर मर जाएं।

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19 JAN 2019 AT 21:31

शोर भरा है मेरे अंदर, पर छुप जाता खामोशी से।
यदि में बाहर रख पाता, तो समझाता मदहोशी से।

ये शांत स्वरूप स्वभाव नही, अंतर्मन का कोलाहल है।
भीतर जितना धधक रहा, हूँ बाहर उतना खामोशी से

जब ये ज्वालामुखी धधकता है मैं बस खामोशी लिखता हूँ।
और फिर उस खामोशी को, रखता हूँ बस खामोशी से।

मेरी इस खामोशी को कोई कोमलता मत समझो तुम।
भीतर से जो फूट पड़ा, सब राख बने खामोशी से।

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