कितने महखाने आबाद किये हैं इन आँखों से तूने ही,
सारे आशिक़ बर्बाद किये है इन आँखों से तूने ही।
फंसा अभी तक जो भी तेरे इन केशो में एक भी बार,
कोई न आजाद किया है, इन हाथों से तूने ही।
होंठ गुलाबी पंखुड़ियों से खिलते रहते जैसे ही,
भंवरो को मिलने न दिया है इन फूलों से तूने ही।
गर्दन जैसे एक सुराही, जैसे भरती पानी हो,
प्यासों को प्यासा ही रखा, तूने और बस तूने ही।
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