कन्हैया अग्रवाल  
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Joined 28 June 2018


Joined 28 June 2018

जो समय बनकर बीत रहा है,,

वक्त नही, जीवन है अपना...

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किसी के चले जाने के बाद वो जो थोड़ा रह जाता है ना आपके अंदर ,

वही कैंसर होता है जिंदगी के लिए....

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छल रहित व्यवहार उत्तम है किंतु,,

एक दिन अपना ही शत्रु बन जाता है..!!

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बादल न घटायें, हो रही बरसात इन दिनों
सावन से हुए तुम बिन साजन, जज्बात इन दिनों
आगाज हो सुबह का, या अंजाम शाम का
उदासियों में लिपटे बस, लम्हात इन दिनों
वेदना की थाप पे, गुनगुना रहे दर्द कई
बेबसी की सज रही जैसे, बारात इन दिनों
अच्छा कहो सुनते नहीं या, बेख़बर सुन के
रह जातीं मुझ तक सिमटती, बात इन दिनों
प्रणय प्रियतम कर लिया, जब तुम्हारी यादों से
कर लेता फ़िर रोज तुमसे, मुलाकात इन दिनों
मुबारक महबूब तुम्हें, बस्तियाँ सितारों की
ठहरीं इधर अमावस सी , रात इन दिनों

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एक लम्बी गहरी नींद की तलब है ..

काश.....ऐसी भी एक रात हो

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अच्छा लगता है जब हम मुस्कराते हैं,,

और भी अच्छा लगता है जब अपने मुस्कराते हैं....

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सिल कर रखता हूँ होंठ अपने,,

कि कहीं दर्द मेरा बयाँ हो न जाये....

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देखी ज़माने की यारी,,
बिछड़े सभी बारी-बारी....

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लिख तो बहुत कुछ दूँ, पढ़ सकोगे तुम
परिभाषा समझ भाषा में मेरी, ढल सकोगे तुम
पल का यकीं नहीं, कैसे उम्रभर की कह दूँ
क़दम कुछ सही साथ मेरे, चल सकोगे तुम
आज़ हूँ रौशन, कल रहूँ न रहूँ
चराग़ सा जीवन में मेरे, जल सकोगे तुम
ग़ौर से देख लो, बिखरे रंग आसपास के मेरे
आशाओं को मेरी, कहो रंग सकोगे तुम
हूँ अभी अनजान समझ लो, ख़ुशबू से मैं
बन महक बगिया में मेरी, बह सकोगे तुम
रह गया गर अनकहा सा, मुझसे कभी कुछ
बात मीत मेरे मन की, कह सकोगे तुम

✍️ कन्हैया अग्रवाल " गोपी "

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ज़रूरी तो नहीं,,

जो पास न हो...साथ भी न हो

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