Kirti Singh   (कीर्ति)
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From - Araria, Bihar
Lives - Mumbai
Joined 24 June 2017


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Joined 24 June 2017
25 JUN 2023 AT 0:11

Oh dear life,
Thou forget not, to give me pain
I promise to forget not, to smile

- कीर्ति !!

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2 JUN 2023 AT 1:43


अप्सरा सी दिखती हो साड़ी में तुम,
मगर,
तुम जीन्स पहनना मत छोड़ना।
प्लाज़ो भी पहना करना कभी कभी।
वो कफ़्तान भी फबता है तुम पे बहोत।

सुनो,
साड़ी, जीन्स, प्लाज़ो, कफ़्तान।
कुछ भी पहनो, क्या फ़र्क?
जंचते ये नहीं,
जंचती तुम हो, संगेमरमर सी।
हमेशा ...

- कीर्ति!!

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16 APR 2023 AT 13:41

रात को आसमान में छिटके तारों को,
जोड़ कर बना लेती हूँ तस्वीर तुम्हारी।
और फिर करती हूँ बातें तुमसे सवेरे तक।

उन पलों में,
तुम्हें मुझसे कोई नहीं छीन सकता।
तुम, स्वयं भी नहीं।

मुझे …
रात अच्छी लगती है।
मुझे …
अपनी तन्हाई अच्छी लगती है।

-


15 APR 2023 AT 22:16

'सहेजना'

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13 APR 2023 AT 11:37


हां,
अक्सर ,
मुस्कुराती हूँ मैं,
हंसती हूँ बहोत।
क्योंकि,
आंसुओं का समंदर है,
मेरी आँखों में ...

- कीर्ति !!

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12 APR 2023 AT 21:38

एक दिन,
मन से निकाल कर,
तुम्हारे रूठ जाने का डर,
करता तुमसे सारी बातें।

टूट जाने देता हर बांध,
पहुंचने देता तुम तलक,
वो सब धारा-प्रवाह
जो दबा रह गया मेरे अंदर।

नहीं पता,
तुम समझतीं,
या फिर से एक बार,
नाराज़ हो जातीं मुझसे।

एक दिन,
करता मैं तुमसे,
वो सारे शिकवे,
जो मुझे तुम्हीं से थे।

तुमसे?

और किससे भला?
और किसी को तो कभी,
सौंपा ही नहीं,
मैंने खुद को।

वो एक दिन,
आया ही नहीं कभी ...

-


12 APR 2023 AT 9:53

'अव्यक्त'

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11 APR 2023 AT 23:39

अक्सर ,
चली जाती हूँ मैं।
चुपके से,

अतीत के उस गलियारे में,
जहां देखती हूँ खुद को,
दौड़ कर,
आपकी गोद में चढ़ते हुए।

मुझे,
आपकी गोद में,
और फिर आपकी उंगलियां थाम कर,
आपके साथ बाज़ार जाना याद है पापा।
मुझे वो टॉफी, खिलौनों की जिद करना,
और आपका,
मेरी हर ज़िद पूरी करना भी याद है पापा।

मैं कब रोने वाली हूँ,
और मुझे कब मुस्कान की ज़रूरत है,
आपको सब मालूम होना भी याद है पापा।

पापा,
मैं आज भी रोने से पहले आपको ढूंढती हूँ,
आज भी मुस्काने से पहले आपको देखती हूँ।
मैं जानती हूँ कि आप मुझे दुनिया दे देना चाहते हैं,
लेकिन पापा,
मेरे लिए,
‘पापा की लाडो’ कहलाने से बड़ा,
कुछ भी नहीं।

- कीर्ति !!

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8 APR 2023 AT 0:31

यूँ ही नहीं करती हूँ मैं परवाज़, बेपरवाह,
यूँ ही नहीं मेरे हौसलों में उड़ान आयी है।
यूँ ही नहीं है यकीन मुझे खुद पर, बेपनाह,
यूँ ही नहीं मैंने बेलौस जीने की हिम्मत पायी है।
मैंने,
उसकी उंगलियां थाम कर सीखा है समंदर पर चलना।
मैंने उससे ही चट्टानों से टकराने की कूवत पायी है।
वो शख्स जिसे मैंने कभी हारा हुआ नही देखा,
वो शख्स जिसे मैंने कभी टूटा हुआ नहीं पाया।
वो जिसने हाथ बढ़ा कर हमेशा बिजलियों को पकड़ा है,
वो जिसने कदम बढ़ा कर हमेशा फासलों को जकड़ा है।
वो जिसने हमेशा मुस्कुरा कर हर गम गले लगाया है,
वो जिसने हमेशा मुझको, सिर्फ आगे बढ़ाया है।
वो जिसने हमेशा मुझको डिगे रहना सिखाया है,
वो जो मेरा गुरुर, मेरी हिम्मत, मेरी ताकत है।

पापा! मुझे अपनी उंगलियां मत छोड़ने देना,
पापा! मुझे कभी इतनी बड़ी मत होने देना।

- कीर्ति !!

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25 MAR 2023 AT 1:16

अक्सर जीत जाती हूँ मैं तुमको,
फिर भी,
वो कभी-कभी, गाहे-बगाहे,
तुमको हार जाना
बहोत सालता है मुझे।

मैं जानती हूँ,
ये हर बार तुम्हें जीतते जाने की
मेरी ख़्वाहिश,
आदत की तरहा पड़ चुकी है मुझे।

मैं जानती हूँ,
कभी कभी तुमको हार जाना भी,
स्वीकार होना चाहिए मुझे।

मैं जानती हूँ,
मानती नहीं फिर भी।

तुम मेरी विजय हो,
तुम्हीं मेरी पराजय भी हो।

- कीर्ति!!

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