19 SEP 2017 AT 8:00

वक़्त इतना धोख़ेबाज़ न होता
ग़र ओ मुसाफ़िर तू यूँ बर्बाद न होता
अंधेरों के साये में महफ़िल नहीं सजतीं
होश तुझे होती तो तू भी आज उजाले का मोहताज़ न होता

- ©किरीट जोशी