तुम ना हो तो
तुम ना हो तो
घर सूना लगता है
बिन तुम्हारे
चाय पीना भी
अधूरा लगता है
कहने को तो
हम तुम अक्सर
व्यस्त होते हैं
लेकिन दोनों के
साथ होने से ही
अपना घर
पूरा लगता है
तुम ना हो तो
घर सूना लगता है-
साझा करने चली हूं, कभी हंसते कभी मुस्कुर... read more
मानवता
खो गई है
कहीं दुबक कर बैठी है
सहीं ग़लत के दायरों को
लाँघ कर
दिशारहित
उड़ती फिर रही है
मैं ही सहीं
तुम ही ग़लत के आभासित
रूढ़िवादी विचारों में
क्यों ये पल रही है
अरे संसार के सर्व श्रेष्ठ राजकुमार
तुम्हारी असली धरोहर
मानवता
कहीं खो गई है
समय है अभी
ढूँढ लाओ
विवेक जगाओ
अन्यथा जब प्रकृति
रौद्र रूप में प्रस्तुत होगी
रंग जाति भाषा पद
धर्म गोत्र आदि इत्यादि
सब सिमट जायेंगे
जब प्रकृति की
अदालत लगेगी
हे मानव
खो गई है तेरी मानवता
समय रहते
ढूँढ ले आ उसे!
उसी में समाहित है
एकता समता
शांति प्रगति
शक्ति उन्नति
समरूपता संस्कारिता!
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वह
वृहद वृक्ष
विराट विकट वर्षामय
वर्षा वेग विशाल विलय
वरद वायुमय वन व्यापक विजय ।-
अब
आसान नहीं
फिर से करूँ
किसी अजनबी पर भरोसा
दूध का जला छाछ को
कहते हैं पीता है फूँक फूँककर!-
उम्र का क्या है, हर रोज़ बढ़ रही है
कभी हालातों से कभी जज़्बातो से लड़ रही है ।
ज़नाब बढ़ती हुई उम्र असल में पल पल घट रही है!-
और हम चुपचाप
नन्हें बच्चे की तरह
चुपचाप उसके साये में
बेफ़िकर सो गये-
जिसकी खुशबू मात्र से
जीवन महक जाता है...
और कर्म वो माली है
जिसके सानिध्य मात्र से
फूल अनुपम बन जाता है।
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स्थिरता में उन्नति नहीं, बैठ न अपने हाथ मलो
रुक जाना ही जड़ता है, थम न जाना चले चलो।
ठूंठ कभी न झुक पाया, सक्रियता का वरण करो
चलायमान है जग सारा, विधि विधान अनुसरण करो।
सूर्य चंद्रमा पृथ्वी वायु, चलित सदा यह ध्यान धरो
"परिवर्तन" ही अपरिवर्तित, श्रृष्टि नियम स्वीकार करो।
सुख समृद्धि वैभव यौवन, हैं एक पहलू जान पड़ो
दूजा पहलू जो भी होवे, स्वागत हेतु तैयार रहो।
दिन और रात या जनम मरण के, सत्य से साक्षात्कार करो
मनःस्थिति में दृढ़ता होवे, निरंतर यह अभ्यास करो।
स्थिरता में उन्नति नहीं, बैठ न अपने हाथ मलो
ठोकर खाकर थम न जाना, दुगुन उत्साह भर चले चलो।
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सर्दी के दिनों के
किसी रविवार की सुबह.....
जब अधमुंदी आंखों से
बाहर का झरोखा दिखता है
एक अनेक या कई कई सारे
मन भतेरे कयास लगाता है
जाने इस धुंधले आकाश से
आज कौन सा नज़ारा निकलेगा
इसके पीछे होंगे घने काले बादल
या सुहानी धूप का सूरज चमकेगा
भागते दौड़ते सप्ताह के बाद
एक ठहराव भरा रविवार
चाय की चुस्कियों के साथ
थमके बैठने का इशारा करता है...
और वही धुंधला आकाश
अनभिज्ञ अज्ञात दृश्यों को
मन के भीतर ही
रहस्यमय करता है......
सर्दी के दिनों के
किसी इतवार की सुबह.....-
चलना शुरू तो कीजिए।
काफ़िला भी बन जाएगा
मिलना शुरू तो कीजिए।
ठोकरों से घबराना नहीं
मजबूत होना भी सीखिए।
ज़िंदगी हसीन है जनाब
महसूस करना शुरू तो कीजिए...-