Kiran TheRayOfMystery   (The Ray Of Mystery)
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Joined 6 July 2017


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Joined 6 July 2017
9 JUL AT 22:42

तुम ना हो तो

तुम ना हो तो
घर सूना लगता है
बिन तुम्हारे
चाय पीना भी
अधूरा लगता है

कहने को तो
हम तुम अक्सर
व्यस्त होते हैं
लेकिन दोनों के
साथ होने से ही
अपना घर
पूरा लगता है

तुम ना हो तो
घर सूना लगता है

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23 APR AT 18:03

मानवता

खो गई है
कहीं दुबक कर बैठी है
सहीं ग़लत के दायरों को
लाँघ कर
दिशारहित
उड़ती फिर रही है

मैं ही सहीं
तुम ही ग़लत के आभासित
रूढ़िवादी विचारों में
क्यों ये पल रही है

अरे संसार के सर्व श्रेष्ठ राजकुमार
तुम्हारी असली धरोहर
मानवता
कहीं खो गई है

समय है अभी
ढूँढ लाओ
विवेक जगाओ
अन्यथा जब प्रकृति
रौद्र रूप में प्रस्तुत होगी

रंग जाति भाषा पद
धर्म गोत्र आदि इत्यादि
सब सिमट जायेंगे
जब प्रकृति की
अदालत लगेगी

हे मानव
खो गई है तेरी मानवता
समय रहते
ढूँढ ले आ उसे!

उसी में समाहित है
एकता समता
शांति प्रगति
शक्ति उन्नति
समरूपता संस्कारिता!

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30 MAR AT 11:13

वह
वृहद वृक्ष
विराट विकट वर्षामय
वर्षा वेग विशाल विलय
वरद वायुमय वन व्यापक विजय ।

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30 MAR AT 10:57

अब
आसान नहीं
फिर से करूँ
किसी अजनबी पर भरोसा
दूध का जला छाछ को
कहते हैं पीता है फूँक फूँककर!

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30 MAR AT 10:52

उम्र का क्या है, हर रोज़ बढ़ रही है
कभी हालातों से कभी जज़्बातो से लड़ रही है ।
ज़नाब बढ़ती हुई उम्र असल में पल पल घट रही है!

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16 AUG 2024 AT 23:13

और हम चुपचाप
नन्हें बच्चे की तरह
चुपचाप उसके साये में
बेफ़िकर सो गये

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16 DEC 2021 AT 22:35

जिसकी खुशबू मात्र से
जीवन महक जाता है...

और कर्म वो माली है
जिसके सानिध्य मात्र से
फूल अनुपम बन जाता है।

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15 DEC 2021 AT 11:35

स्थिरता में उन्नति नहीं, बैठ न अपने हाथ मलो
रुक जाना ही जड़ता है, थम न जाना चले चलो।
ठूंठ कभी न झुक पाया, सक्रियता का वरण करो
चलायमान है जग सारा, विधि विधान अनुसरण करो।
सूर्य चंद्रमा पृथ्वी वायु, चलित सदा यह ध्यान धरो
"परिवर्तन" ही अपरिवर्तित, श्रृष्टि नियम स्वीकार करो।
सुख समृद्धि वैभव यौवन, हैं एक पहलू जान पड़ो
दूजा पहलू जो भी होवे, स्वागत हेतु तैयार रहो।
दिन और रात या जनम मरण के, सत्य से साक्षात्कार करो
मनःस्थिति में दृढ़ता होवे, निरंतर यह अभ्यास करो।
स्थिरता में उन्नति नहीं, बैठ न अपने हाथ मलो
ठोकर खाकर थम न जाना, दुगुन उत्साह भर चले चलो।

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8 DEC 2021 AT 22:46

सर्दी के दिनों के
किसी रविवार की सुबह.....

जब अधमुंदी आंखों से
बाहर का झरोखा दिखता है
एक अनेक या कई कई सारे
मन भतेरे कयास लगाता है

जाने इस धुंधले आकाश से
आज कौन सा नज़ारा निकलेगा
इसके पीछे होंगे घने काले बादल
या सुहानी धूप का सूरज चमकेगा

भागते दौड़ते सप्ताह के बाद
एक ठहराव भरा रविवार
चाय की चुस्कियों के साथ
थमके बैठने का इशारा करता है...

और वही धुंधला आकाश
अनभिज्ञ अज्ञात दृश्यों को
मन के भीतर ही
रहस्यमय करता है......

सर्दी के दिनों के
किसी इतवार की सुबह.....

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29 NOV 2021 AT 21:46


चलना शुरू तो कीजिए।
काफ़िला भी बन जाएगा
मिलना शुरू तो कीजिए।
ठोकरों से घबराना नहीं
मजबूत होना भी सीखिए।
ज़िंदगी हसीन है जनाब
महसूस करना शुरू तो कीजिए...

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