साड़ी में लिपटी वो अदभुत नारी,
माथे पे बिंदी, सिर पे पल्लू रखा करती थी
दिखती थी वो साधारण सी,
लेकिन करेजा शेरनी का वो रखती थी
जब रहते थे हम सहमे से,
अपनी गोद में आहिस्ता से सुला लेती थी
चाहे कैसे भी हो हालात,
इक आंच ना किसी पे आने देती थी
इक रोटी मांगने पे,
२ - ३ रोटियां थाली में रख देती थी
अपनो की खुशियां हो या बीमारी,
वो माँ ही तो थी जो आंसू बहा लेती थी
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