7 JUN 2017 AT 16:23

कल तक जो आयना मुजे देखके खिल उठता था,
वो आज मुजे देखकर मुर्झा बैठा ;
कल तक जो बच्चे दी दी केहके प्यार बरसातें थे,
वो आज मुज पे पत्थर की बारिश करने लगें ;
लोगों की जालिम नजरें ऐसे देखती हैं
जैसे मुझमें कोई भूत देख लिया,
जैसे कि तुम्हारे गुनाह की सजा मुझे देते रहे ;
मगज के तुम अपाहिज थे, और देखो
सरकार ने मुजे अपाहिज ज़ाहिर कर दिया ;
आख़िर गुनाह खुदा ने किया मुझे खुबसुरती देके,
या तुम्हें ये दो आँखे देके,
गलती मेरी हो गई जो इनकार किया मैंने,
शायद संविधान पढ़ने में ग़लती कर दीं मैंने,
साबित कर दी तुमने मर्दानगी कुछ पल में ही,
मुझे साबित करनी रही, उम्र भर !!!!


- Khushboo Thakkar