ऐ रात के राही ' चाँद ' सुनो!!
मेरा एक ज़रूरी काम करो,
मनमीत के शहर में जाओ तुम
उसे मेरा हाल सुनाओ तुम।
मैं हर शब तुमको तकता हूँ.......
क्या वह भी रात को सोते वक्त
कुछ तुमसे बातें करती है?
क्या मेरी सूनी आंखों के ,
पैग़ाम कभी वह पढ़ती है?
ऐ रात के राही उससे कहो.....
इस दिल को एक पल चैन नहीं,
क्यों प्रीत के बंधन बांधे थे?
क्यों आस के फूल थमाए थे?
सब कसमें-वादे भूल गए?
क्यों अब तुम हमसे रूठ गए..?
हम तुम बिन जी न पाएंगे,
ये रिश्ता तोड़ न पाएंगे।
ऐ चाँद उसे ये कहना तुम!!!!!!
मैं अश्क बहाता रहता हूँ
मैं राह तुम्हारी तकता हूँ
मैं हर दिन जीता मरता हूँ....।
ऐ चाँद जब लौट के आना तुम
उसे मेरे पास ले आना तुम।
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