बड़े दिनों बाद
हुई मुलाकात....
मेरी पुरानी पड़ी कलम से ।
फिर याद आया
हमने लिखावट से
जाम बनाना छोड दिया ही।
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याद आयी कुछ पुरानी बाते
उन गुजरे हुये लम्हो की
हम मुस्कुराना चाहते थे मगर
कमबख्त आखों से आसू छलक आए-
हुस्न के गहरे समंदर में ,
खुदको घिरा हुआ पाया
गिरने का डर था पहले
आखिरकार दिल गिर ही गया
अजीब सी दिल की कशमकश के बाद
मानो तलब लगी उसी समंदर की
उसी समंदर में गिर के प्यासा
दिल गोते खाने को जी करता है
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ढूंढके समेटोगे तो ही मिलेगी
यु बैठे बैठे इंतज़ार करोगे तो
खुशिया बिखरी हुई ही मिलेगी-
प्रेम म्हणून माणसाने
माणसास काय दिले ?
हृदय होते रे, तुझपासी!
कधी वापरावे नाही वाटले?
घृणा अहवेळनाने तू
तुझ्यातलेच तुझपन घालविले
प्रेम म्हणून माणसाने
माणसास काय दिले ?
गोडबोली चा साठा
कुठेतरी तुझा आटला
मनातल्या आनंदाचा
झाला तुझा निचरा
आपल्याच वागणुकीने
आपल्यांचेच अश्रू सांडले
प्रेम म्हणून माणसाने
माणसास काय दिले ?-
उम्र निकल चुकी है
दिल्लगी आशिकी करने की
अब बस जिम्मेदारी परेशानी
सब की तरह
मेरी भी यही कहानी.....
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वो यादें भी यही है
वो वादे भी यही है
वो रास्ता भी यही है
वो घर भी यही है
देखा करता था तुम्हें
वो धड़कन भी यही है
हर लम्हा तेरे साथ का
वो लम्हा भी यही है
पर अब साथ ना तू मेरे
तो अब कुछ भी नहीं है
पर साथ ना तू मेरे अब
तो सचमे कुछ भी नहीं है
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जिंदगी मे
भागते भागते बोहोत महंगी चीज गुमगयी हे
'हसी' थी वो अब मिल ही नही रही हे
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