आँखों में आशु देखा,
होठों पे हसीं देखी।
बिछड़ते हुए मैंने अपने सनम की बेरुखी देखी,
जाते जाते भी सुना गया,
गुस्से के साथ फिक्र भी जता गया।
कह के गया है ख़्याल रखना,
प्यार से न सही मगर गुस्से से समझा गया।
मजबूरी थी उसकी या कुछ और कभी पता न चला,
मेरा महबूब मुझे अकेला कर मुझसे दूर चला गया।
साथ साथ चलने का वादा किया था,
और बीच राह में मुझसे हाथ छुड़ा गया।
कहता था ख्वाब नही जो नींद में आऊं,
और अब सपने में भी मुझे सता गया।
मेरा महबूब मुझे अकेला कर मुझसे दूर चला गया।
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