keshav upadhyay   (Keshav upadhyay)
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Joined 6 November 2017


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Joined 6 November 2017
16 JAN 2022 AT 15:06

As a senior or boss,
you will get the value you want
from your junior employee
only when you understand,
that your junior works with you,
under your guidance,
not under you.

एक वरिष्ठ या बॉस के रूप में,
आपको अपने कनिष्ठ कर्मचारी से
वह मूल्य जो आप चाहते हैं,
तभी मिलेगा जब आप यह समझेंगे कि,
आपका कनिष्ठ आपके साथ काम करता है,
आपके मार्गदर्शन में,
आपके अधीन नहीं।

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12 DEC 2021 AT 22:32

हां तो क्या हुआ अगर छूटते जा रहे हैं कुछ ख़ास लोग गिरफ्त से,
इश्क, मुहब्बत, शायरी, और फ़िर 'उन्हें' भी तो छोड़ा है हमने।

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28 APR 2021 AT 22:34

इज़हार किसी और पर किया होता तो शायद जवाब हमेशा "हां" होता,
मसअला ये है कि मोहतरमा जानती हैं हम पर कैफियत क्या है उनके शबाब की।

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12 FEB 2021 AT 23:17

Thank God! No casualty..even after a Earthquake..

ohk fine! But I am worried about those who have been hugged and the earth shaken as well.

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3 FEB 2021 AT 11:54

देह है मिर्ज़ापुर का,
दिल है बनारस का,
कलम है इलाहाबाद की,
संस्कार हैं भारत का।

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26 JAN 2021 AT 10:41

लडकी है, कोई जन्नत की हूर नहीं, पहचानता हूं मैं,
ख़ूबसूरत कम, नकचढ़ी हैं ज्यादा, मानता हूं मैं,
और लिक्ख कर रख दिए हैं केशव, उसके नखरें सारे,
मत बताओ नाक नक्श उसके, क्रश हैं मेरी जानता हूं मैं।

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9 DEC 2020 AT 9:05

सुबह दोपहर शाम नहीं, तो किसी इक वक्त बात हो जाए,
बिछड़े थे जो हम कभी, कहो तो इक वक्त साथ हो जाए,
लिख रहा था खत, इक दफा मुलाक़ात के लिए,
कहो तो खत देने के बहाने ही मुलाक़ात हो जाए।

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26 NOV 2020 AT 22:42

लेकर तो चल रहा हूं
'ए दिल' तुझे,
उसकी आहंटो से भी दूर,
बस इक गुज़ारिश है,
फ़िर से कहीं,
किसी से इश्क़ मत कर लेना।

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12 NOV 2020 AT 1:13

हमारे बीच इश्क़ की कईयों ऐसी बातें हैं,
जिन्हें तुम नकार नहीं सकती,

और कम से कम ख़ुद से तो झूठ ना बोलो,
की अब तुम मुझसे प्यार नहीं करती,

हां ठीक है,
तुम्हारे चाहने वालों की इक कतार है तुम्हारे पीछे,

पर अब जब इश्क़ नहीं है मुझसे,
तो कोई नया इज़हार क्यों स्वीकार नहीं करती।

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11 NOV 2020 AT 23:55

हां, जानता हूं तुमने अंगूठी निकाल फेंका है,
पर जो तुम्हारी उंगलियों में,
मैं ख़ुद की उंगलियों को फंसाकर,
तुम्हारी उंगलियों को, अपने होंठो से चूमा करता था,
उन होंठो की सुगंध को कैसे निकाल फेंकोगी?

हां ठीक है मान लिया, तुमने ख़ुद को मना लिया है,
पर जब कभी अपने बिस्तर के गद्दो पर,
अपनी बाहें फैलाकर लेटोगी,
तो मेरी यादों की परछाई को,
तुम्हारे यौवन पर, प्यार से क्रीड़ा करते हुए,
लेटने से रोकने के लिए,
ख़ुद को कैसे मना कर पाओगी।

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