हम ने लिखा उस ने पढ़ा उस ने पढ़ा हमें अच्छा लगा हम ने मुस्कुराया उसने नजरे झुका ली हमने उसको देखा उसने आहिस्ता आहिस्ता अपनी चाल घुमा ली रास्ता तय करती गयी वो अकेले, हम देखते रहे उसे इन नजरों और मुस्कुराने के खेल में न जानें ऐसे करके कितनी माशूकाओं ने मुक्कमल अंजाम पर पहुँचने से पहले, अपनी आरजू मन मे छुपा ली......
कैसे आदम ? हो तुम कहते हो अमन चाहिए फैला कर हैवानियत फूलों भरा चमन चाहिए रैन बसेरा उजाड़ कर किसी का मन चाहा सनम चाहिए जंग पड़ोसी से करके प्यार भरा मन चाहिए लफ्ज़ो पे पित्त सा कड़वापन फिर भी कानों को सुनने को मीठापन चाहिए जानवरों जैसे कर्म तुम्हारे पर इंसानी जनम चाहिए कैसे आदम हो तुम....?
सत्य बड़ा मृदुल है सरल और तरल है सत्य ही निर्मल है विकल परिस्थितियों में सत्य अमर है कठिन समय मे सत्य अजर है सत्य ही नाम है सत्य ही राम है सत्य ही काम है सत्य ही निश्छल है सत्य ही सकल है विवेक मरे सत्य ही अक्ल है सत्य ही अटल है......