Kavita Kudiya   (Kavita Kudiya)
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Joined 29 December 2017


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YESTERDAY AT 7:51

मैं रस्तो पे सफर करने लगा.
जिंदगी कुछ इस तरह बसर करने लगा.
मंजिले अब नहीं मेरी
मैं मुसाफ़िर सा दुनिया मे मशहूर होने लगा

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26 MAR AT 14:14

Beauty lies in being in love with the right person, for whom I waited a long time and then suddenly
encounter with the love that i looked for my entire life...
The sun is shining like it never does, the wind blows all over and touch my face and saying that
she is happy for me..
Every word i speak is clear and meant for him or her...
Everything is just as beautiful as it could be..
In just a fairy tale...

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26 MAR AT 8:54

जब लिखने लगा तो समझने लगा जिंदगी क्या हैं,
तेरे कुछ अनकहे किस्सों का एक गुलसिता हैं,
कुछ उलझती सी राहों मे,
कई गुमसुम से ख़्याबो का जहान है..
जिंदगी मुझ मे तेरे होने का और
तुझ मे मेरे होने का एक हसीन फलसफा है
जब लिखने लगा तो समझने लगा जिंदगी क्या हैं..

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21 MAR AT 23:05

कल शहर आई थी..
एक उम्र बाद वो मुस्कुराई थी..
नम थीं नज़र उसकी पर..
दिल से वो खिलखिलाई थी...
हर किसी की नजर थीं उसी पे..
जिस पल जिंदगी शहर से टकराई थी..
कल शहर आई थीं..

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6 MAR AT 9:51

मैं भूल भी जाऊं तुम्हें..
पर मुझे याद दिलाता है
अलमारी बंद तुम्हारा वो रुमाल..
जिसे तुमने छत्री सा बना कर मेरे सर पर ढाक दिया था..
मैं समझीं थी कि वो चुनर हैं तुम्हारे नाम कि
जिसे उड़ा कर तुमने मुझे अपने नाम कर लिया था..
पर वो सिर्फ ख्याल था मेरा, और वो चुनरी नहीं बस रूमाल था तेरा..

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11 FEB AT 0:14

बेबाक नहीं होती,
वो डरी हुई सी , सहमीं सी घबरा हुईं होती हैं..
उनमें तूफानों सी बेबाकी
और फिज़ा कि रवानगी नहीं होती हैं..
पर हां उनकी झुकी हुई ,
आंखों में उम्मीद भरा आसमान होता हैं
और उस आसमान कि ख्वाहिश में ही
उन कंपाती सी पलकें भी.
बेख़ौफ़ ही बंदिशों से रब्ता कर बैठतीं,
या तों बंदिशें टूटतीं हैं...
या‌ उम्मीद हार जातीं हैं
पर अमुमन... बंदिशों में..
भी एक उम्मीद पैदा हो ही जाती हैं


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1 FEB AT 22:38

did not need your words to understand your situation. You just need to pour your emotions in it and she has written down your feelings that sometimes cause your happiness, sometimes your pain and sometimes your sorrow..

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14 JAN AT 22:51

जस्बातों कि हजा़र उलझनें लिए हुएं
मैं खुश हुं उसकी आंख कि नमीं लिए हुएं...
मुरझाए से उसके चेहरे पे...
झुर्रियां कुछ और ही खिलतीं हैं ....
मुद्दतें हुईं मुझे उसकी वो आखिरी तस्वीर लिए हुएं...
जो बंद रखीं हैं दिल के तयखआन में अभी मेरे ...
हैं आज़ाद फिज़ा सी वो... और
मैं क़ैद हुं उसकी खुशबू लिए हुएं...
जस्बातों कि हजा़र उलझनें लिए हुएं...

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12 JAN AT 23:25

खुद में उलझी
वो जग को सुलझाती..
दिशा हीन लोगों को वो
समय का पाठ पढ़ाती..
गाति हीन हैं वो खुद में
लेकिन...
गाति का महत्व समझाती हैं..
दो पाटों से मिल कर बनती...
समय कि चाल बतातीं हैं..
खुद में उलझी हैं वो एक घड़ी..
और हर घड़ी का हाल बताती हैं..

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10 JAN AT 22:52



सोचती हूं कि वो ख्याल...
जो मेरे ख्यालों में है..
कभी मेरे रु-ब-रू होगा...
तो क्या होगा...
क्या मुझे उस पे य़कीन होगा...
या शुबा में मेरी नजरों में भरा होगा ...
मैं खुश हुई तो अच्छा होगा...
शायद उसी के नाम के साथ नाम मेरा लिखा होगा......
आज भले ही झूठा सही...
पर कभी तो सच ये किस्सा होगा...
सोचती हूं कि वो ख्याल...
जो मेरे ख्यालों में है....





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