Kavi Mukesh Kharval  
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Joined 6 February 2018


Joined 6 February 2018
13 AUG 2021 AT 22:37

झूठ की बुनियाद पर,झूठ भी नहीं ठिकता
हम तो बात रिश्तों की कर रहे हैं।

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29 MAY 2021 AT 19:39

सब कुछ मांगा मैंने, उसके लिए।
उसे ही नहीं मांगा,अपने लिए।।

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23 MAY 2021 AT 10:38

"बलि का बकरा"

बलि का बकरा, कब तक खैर बनाएगा ।
इलेक्सन की ईद मे,ये भी तो कट जाएगा।

कब रखा है पाल कर,किसी मालिक ने घर पर।
आज दाना डाला हैं,कल ये भी तो बिक़ जाएगा।

हैं भूखबड़ी ज्वालामुखी सी,पूँजीवादी आकाओं की।
कितनों को निगला हैं,इस को भी निग़ल जाएगे।

यह दौर है महामारी का,एक दिन कट जाएगा।
बोलना है तो बोलों बेबाक़,ग़ुलाम क्या बोल पाएगा।

मरे बेबस गरीबी के मारे,आमिर क्या इस दौर से बच पाएगा।
लड़ना है तो लड़ो मिलके,हमसे क्या कोई जीत पाएगा।

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20 MAY 2021 AT 22:40

कफ़न ही कफ़न, बिक रहे हैं बाजारों में।
'माशूक' तू कुछ और मांग, चुनर ना मांग।।

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5 MAY 2021 AT 8:24

मोबाइल का इस्टेट्स तो 2 दिन का होता हैं पर प्रेम, स्नेह, सहयोग, सद्भाव का इस्टेट्स जिंदगी के बाद भी.. इसी लिए उसे बनाए रखों ताकि बने रहो..मोहब्बत से लबरेज़ विश्वास की दुनिया में..मोबाइल का इस्टेट्स वक्त के आगें गिर सकता हैं पर अपना नहीं... हर दौर में मस्त थे हर दौर में मस्त रहेंगे भले ही वो दौर अपनी ही मौत के मातम का हो हम हँसेंगे और जोर से हँसेंगे ताकि कोई दर्द के आँसू रोए ना..क्यो की हम डरते नही हम जीते हैं जिंदगी अपने अंदाज से..भले ही वो भुखमरी के गलियारों से गुजरे या मासूक के..हम सदाबहार मजनू है इस कायनात के..कहि मशाले जलाई हैं हाथ जला के वीरान शहरों में..पर दिल नही जलने देगें भले ही कोई क्यो ना जले, हम कल भी मोहब्बत के बीज बोते थे आज भी बोते है बस वो जमी, जहा, जिंदगी, जिस्म महोब्बत से भरा हो नफ़रत के तो आज कल सूखे समुंदर भी भरे पड़े हैं..

हा हम तुम्हें माफ़ करेंगे, पर बेइंतहा मोहब्बत करेंगे
हो मंजूर तो हा करना, नहीं तो हम भी ना करेगें...।।

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23 MAY 2020 AT 10:46

दिल से निकलने वाले लोग
एक दिन दिमाग से भी निकल जाते हैं
और उनका यूंही जिंदगी से निकल जाना
इतना दर्दनाक तो नहीं होता

पर होता हैं दर्दनाक अचानक
वो सब कुछ ख़त्म हो जाना
जो पाया था सालों से
क्षण में क्षणिक हो जाना

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21 MAR 2020 AT 18:24

एक बीमारी क्या आई शहर में ।
शहर सारा वीरान कर दिया ।।
सब हो गए खुद से अकेले ।
जहन में डर ने घर कर दिया ।।
शहंशाह थे जो मुल्क की महफिलों के ।
उन्हें भी इस दोहर ने कैद कर दिया ।।
मर रहे बेमौत लावारिस लोग ।
हे महामारी बेगुनाहों ने क्या कर दिया।।
दो वक़्त की रोटी हुई मुश्किल ।
गरीब का घर तुने ठप कर दिया ।।
जो सोचा नहीं वो घड़ी दो घड़ी में कर दिया ।
हे महामारी तूने क्या से क्या कर दिया ।।
हिल गई हुकूमतें-सरकार भी ।
सब का चका जाम कर दिया ।।

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20 MAR 2020 AT 19:23

भूख से मरना अच्छा है,
इन नाजुक हालातों में ।।

बीमारी से मरना हुआ,
तो शहर ही तबाह कर डालोगे ।।

होगी लाशें लावारिस,
बेगुनाहों को मार डालोगे ।।

अच्छा है कुछ दिन घर में ही रहो,
ये महामारी मार डालोगे ।।


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22 JAN 2020 AT 21:57

सच कहूँ तो, बहाने बनाना नहीं आता।
बहुत सिखाया दोस्तों ने,पर झूठ बोलना नहीं आता।।

तुम्हारी मर्जी, तुम बात करो या ना करो।
कश्म तुम्हारी तुम मरो, और कोई याद नहीं आता।।

काम से बात करने को, तो पूरी दुनिया हैं।
फिजूल में तुमसे बढ़के, कोई रास नहीं आता।।

मत बनों ईद का चांद, बार-बार यूँही तुम।
त्योहार इश्के दहलीज़ पर,ये रमज़ान भी नहीं आता।।

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14 JAN 2020 AT 23:26


धोखा उन्होंने,जान बूझ कर दिया था।।
इत्तफाक से तो हमें, मोहब्बत हुई थी।

लगाओ नमक-मिर्ची,मेरे जख्मों पर।
चीख़ दर्दनाक होगी,पर आवाज़ ना थी।।

क़सूर कुछ ना था, इन भीगीं पलकों का ।
हा दिल ने जरूर, दहलीज़ लगी थी ।।

तुम तो समझों यारों, हमारी मोहब्बत को।
वक़ील बन जाए, अब इतनी ताक़त ना थी।।

महफ़िलों में उड़ेगी, महज़ मज़ाक इतनी।
बस दिल के भीतर अब, कोई ठीस ना थी।।

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