जो खो देते हैं मोहब्बत अपनी,
वो फिर कभी कुछ खोते नहीं
ये जो खूबसूरत लोग हैं ना,
शायद दिल के अच्छे होते नहीं,
यूं तो मेरा मन है,
तेरी गोद में सिर रखकर रोने का
पर डरता हूं, कि शायद तू ये न कह दे कहीं
तुम मर्द हो और मर्द रोते नहीं!-
You may feel like reading any poetry, micro-tale or a letter but ... read more
हिसाब रखना भी जरूरी है;
लोग अक्सर पूछा करते हैं,
तुमने किया क्या है मेरे लिए?-
लोग बहाना ढूंढ ही लेते हैं,
बीच राह छोड़ जाने या उम्रभर साथ निभाने का!-
खुदा करे कि सलामत रहे किसी दुआ की तरह,
बस एक तू और दूसरा मुस्कुराना तेरा!-
सोचा आज कुछ तेरे सिवा सोचूँ,
अब तक सोच में हूं कि क्या सोचूँ?-
मुरझा गया हूं खुद ही की दिल्लगी से इस क़दर
कि कभी ना अब खिलने का मन करेगा
अब तेरे बिन मैं क्या करूंगा?
हो गया हूं गुम तेरी ही यादों में अब
कभी खुद से भी मिलने का मन ना करेगा
अब तेरे बिन मैं क्या करूंगा?
मिले हैं ये जो ज़ख्म हमें खुद से ही,इनमे भी तेरी खुशबू समाई है
ताउम्र इन जख्मों को लिए फिरूंगा
अब तेरे बिन मैं क्या करूंगा?
पुकार भी नहीं सकते अब तो हम तुम्हें,
अब तेरे बिन मैं क्या ही करूंगा?-
I hate nobody b'coz loving people is already painful enough...
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बलात्कार इंडिया में होता है, भारत में नहीं!
छोटे थे तो माँ ने सिखाया था कि किसी लड़की के अगर पैर लग जाए तो तुरंत उसके पैर छूना, क्योंकि लड़की देवी का रूप होती है! जब माँ दोनों नवरात्रों में कन्यायों को बुलाकर, उनके पैर पूजती थी तो उसकी सिखाई बात अन्दर तक चली जाती थी!
पड़ोस की सब औरतें हमारे लिए चाची, ताई, बुआ और दादी, हुआ करती थीं ! शिशु मंदिर में पढने गए तो वहां भी सब लड़कियां, बहनें थीं जो राखी भी बांधती थीं!
बड़े हुए तो घर में दूरदर्शन पर रामायण जैसा धारावाहिक देखने को मिलता था, ना कि चिकनी चमेली और फेविकोल!
पिता जी रोज शाम को धर्म, अध्यात्म और नैतिकता की चर्चा करते थे जिससे संस्कार मन में बैठते चले गए!
मर्यादा का पाठ घर में हर रोज ही पढाया जाता था, परिणाम ये हुआ कि स्त्री का सम्मान जीवन का भाग बन गया, जिसके लिए अलग से कुछ सोचने की जरुरत नही पड़ती थी;
अपने घर के गेट से बाहर निकलते ही शरीर पर, पूरे कपडे दिखते थे और जब कभी ऐसा करने का ध्यान नहीं रहता था, माँ से कस कर डांट खाते थे! जो गाहे बगाहे अभी भी पड़ जाती है!
देर तक बाहर घूमने की मनाही थी और एक निश्चित समय के पहले हर हाल में घर के अन्दर होना पड़ता था जो अब भी जारी है ! कई बार पूछते थे घर पर कि इतने नियम कायदे क्यों तो जवाब मिलता था कि ये मर्यादाएं हैं जिनका पालन करना ही होगा क्योंकि हम भारत में रहते हैं, इंग्लैण्ड में नहीं !-
अंततः मैंने स्वयं को एक विशाल भीड में ले जाकर छोड़ दिया !
खो जाना किसी भी सामान्य वस्तु अथवा
व्यक्ति को मूल्यवान बना देता है; स्मृतियों में,
यात्राओं में और जीवन में भी...
मैंने देखा था, मेरी कुछ चीज़ें खो जाने से पहले
टके की थीं, खो जाने के बाद वो सब मेरे
लिए मूल्यवान हो गईं !-