Kartik Shukla   (शहज़ाद)
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Joined 2 February 2017


Joined 2 February 2017
4 JUL 2023 AT 21:19

वो जो ख़ंजर हाथ में छुपाए बैठे हैं ,
हम उन्हीं से दिल लगाए बैठे हैं ।
पता चला है लुटेरों से है सोहबत उनकी ,
जिसे तिजोरी का पता बताए बैठे हैं ।।

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27 JUN 2023 AT 23:21

अपनी इच्छाओ की समाधी ,
पर फूल डाल कर आए हैं ,
उस घर के रस्ते के नक़्शे ,
पर धूल डाल कर आए हैं ,
चाहें तो हम आग लगा दें ,
हर रिवाज़ों रीतों को ,
पर मात पिता की ख़ातिर ,
दिल को आग लगा कर आए हैं ।।

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30 MAY 2023 AT 0:29

निगाहों में इस कदर उतर आएँगे ,
नजरें फेर भी लोगी तो नज़र आएँगे ।
रूठ जाओगी तो बिखर जाएँगे टुकड़ों में ,
चूम लोगी हमें तो मर जाएँगे ।।

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6 MAR 2023 AT 19:08

दुनिया में सबसे नशीली हैं तेरी आँखें,
बंद आँखों से भी दिखती हैं मुझे तेरी आँखें ।
बच बच के रहता हूँ महफ़िल में सबसे ,
बच बच के ढूँढ लेती हैं मुझको तेरी आँखें ॥

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20 DEC 2022 AT 20:06

तुमसे दूर होकर आग सा मैं जलता हूँ ,
आँखों में देख तेरी मोम सा पिघलता हूँ ।
तुम ही मेरी मंज़िल हो , तू ही मेरा रास्ता ,
तुमतक आने को रोज़ थोड़ा थोड़ा चलता हूँ ॥

मेरे सपने हज़ार हैं जिन्हें , तुम्हारे साथ बुनता हूँ ,
छोटी हो या बड़ी तुम्हारी सारी बात सुनता हूँ ।
तुम ही मेरी उर्वशी हो तुम ही मेरी मेनका ,
तुमने मुझको है चुना मैं तुमको चुनता हूँ ॥

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21 JUL 2022 AT 20:19

स्वीकार्यता

स्वीकार्यता अनिवार्य है
रोटी कपड़ा मकान से भी मूलभूत
आवश्यकता है स्वीकार्यता
हर क्षण स्वीकार्यता की दौड़ है
परिवार में स्वीकार, समाज में स्वीकार,
प्रेम में स्वीकार, पड़ोस में स्वीकार
हमें बस स्वीकार होना है
पर क्या हम स्वयं को स्वीकार हैं ?
नही मैं तो नही ॥

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24 APR 2022 AT 17:15

लिखने को बहुत कुछ है मगर
कलम ख़ामोश है
कहीं दंगे कहीं पत्थर कहीं आग है
स्याही अब खून है मगर
कलम ख़ामोश है
कहीं चला बुल्डोज़र कहीं मंदिर गिरा
हर धर्म है ख़तरे में मगर
कलम ख़ामोश है ॥

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2 MAR 2022 AT 17:36

मेरे पास एक आख़िरी सिगरेट बची है

बाल्कनी में खड़े होकर चाँद तकते हुए
है दुनिया में सुकून कितना सोचते हुए
शांत सड़कें शहर शांत शांत आसमान भी है
सुकून है हाथ में मेरे जलता धुआँ भी है
कमरे में रखी हैं ख़ाली भरी बोतलें
और रसोई में इस महीने का खाना भी है
दिख रहे हैं मुझको मेरे जाने पहचाने लोग
जो हंसते हैं मिलते हैं बातें करते हैं रोज़
अंदर मेरा परिवार भी निश्चिंत है
रात हो गयी है आँखों में अब नींद है

एकाएक ये सड़कों पर भीड़ कैसी
किसके पदचापों का शोर है
काँधे पर हालातों की अर्थी लिए
भीड़ जा रही किस ओर है
बेबसी है आँखों में पैरों में दुःख के छाले हैं
सत्ता की सनक ने अपने देश से लोग निकाले हैं
राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए ये लोग किस काम के हैं
कुचले टैंक से सड़क पर या भूख से मरे
छोड़ दो उन्हें बेसहारा ये लोग आम ही तो हैं
ढूँढ रहे है मलबों में अपनी की निशानियाँ
कहीं जूता कहीं जैकेट कहीं अंगूठी पड़ी है
पर शुक्र है रात काटने के लिए
मेरे पास एक आख़िरी सिगरेट बची है ।।

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27 FEB 2022 AT 23:14

हम ऐसे खो जाते हैं कि,
सारे रास्ते तुमको जाते हैं ।

जब रूबरू नही होती हमसे ,
तुमको देखने को सो जाते हैं ।

रूह पहचानती है दर्द रूह का ,
चोट तुमको लगती है हम रो जाते हैं ।

एहसास हो कि तुम प्यासी हो ,
हम दरिया हो जाते हैं ॥

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7 FEB 2022 AT 11:02

मेरे उलझे सवालों का सीधा जवाब हो तुम,
मैं स्याह आसमाँ, मुझे रौशन करता मेह्ताब हो तुम,
तुम वो सच जो ख़्वाब सा लगता है,
और मैं वो काँटा जिसका गुलाब हो तुम ॥

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