तुम मुझे यूंही याद करती रहो,
मैं तुम्हे यूंही गुनगुनाता रहूं ,
यूंही हर बात पे तुम रूठती रहो,
यूंही हर बात पे तुम्हे मनाता रहूं
मेरे देखने से यूंही शर्माती रहो
तेरे शर्माने को यूंही देखता रहूं,
यूंही बैठकर सामने मेरे बातें करती रहो
यूंही बातो से तुम्हारी बातें करता रहूं ,
यूंही खिलखिलाती रहो,तुम मुस्कुराती रहो
यूंही बस यूंही तुम्हे देखता रहूं,-
फूलों की खुस्बू कहूं या चांदनी का नूर तुम्हे,
कोई हक़ीक़त कहूं या खुदा का तस्सवुर तुम्हे,
तुम्हारी सादगी, तुम्हारी खूबसूरती, तुम्हारी बातें,
कोई कविता कहूं या अपनी कोई गजल तुम्हे,
तुम पेड़ की ठंडी छव सी और मैं अल्हड़ आवारा,
हा मिला नहीं हूं तुमसे , मगर जानता हूं तुम्हे,-
जिंदगी बडी हसीन है, ऐसी जिंदगी मुबारक हो ,
मिलेगा काफिया एक दिन, मिलने से पहले मुबारक हो
माना थोड़ी दिक्कत है जिंदगी मे, तो क्या हुआ ?
कोई परेशानी हो, हमारी दोस्ती मुबारक हो,
इस बार तो पार्टी से बच गए, पर अगली बार नही छोडेगे ,
हा केक कटिंग तो रह गया मगर ,ये कविता मुबारक हो,
दोस्त होंगे और भी, पर हम जैसा मिल पाना मुश्किल है,
खुशहाल जिंदगी मुबारक हो,तुम्हे जन्मदिन मुबारक हो,-
उसको देखो तो कैसा लगता है? ख़्वाब जैसा,
उसे याद करो तो कैसा लगता है? ख़्वाब जैसा,
उसकी शर्म ओ हया और वो कातिलाना अदाएं,
ये सोचने में कैसा लगता है, ख़्वाब जैसा,
मैं बैठा हू उसके सामने, क्या है ये? हकीकत,
वो बैठी है मेरे सामने कैसा लगता है, ख़्वाब जैसा,
ये उसका बेअंत हुस्न और उसकी कड़कड़ाती आंखे,
ऐसे मौसम में जाना कैसा लगता है, ख़्वाब जैसा,
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खामोशी में शिकायत है आंखो में ख्वाहिशें
क्या यही वो लहज़ा है जो तसव्वुर था तुम्हारा,
कुछ उम्मीदें थी खुद से वो भी पूरी ना हो सकी
क्या यही जज्बा-ए-गर्दिश-ए फलक था तुम्हारा,-
मेरे हर शेर पे जो प्याला भर रही हो शराब का,
मन करता है कि अपनी सभी ग़ज़लें कह दू,
मेरे पास,मेरी जिंदगी में सिर्फ इंतजार है तेरा
एक बोतल शराब पे सब कुछ तेरे सामने रख दू,-
साकी ने शिकायत की तो उठ के चल दिया,
और फिर से वजू किया शराब पीने के लिए,
जिंदगी मेरी, प्यालों में जो पिला रही हो सबको,
एक प्याला मेरे लिए भी रख इंतजार में जीने के लिए,-
तस्सवुर को हकीकत बनाती ग़ज़ल,
नई एक कहानी सुनाती ग़ज़ल,
तुम्हारा एक बार ज़िक्र क्या किया,
तब से हर बात पे इतराती ग़ज़ल,
अजल से अज़ल या अज़ल से अजल
हर सफ़र तय कराती ये करामाती ग़ज़ल,
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