"बेटीयां"
ओस की बूंदों सी होती हैं बेटियां
स्पर्श खुरदुरा हों तों रोती हैं बेटियां
मां की प्यारी, पापा की दुलारी होती हैं बेटियां
उम्र के हर मोड़ पर चहकती हैं बेटियां
रौशन करेगा बेटा सिर्फ एक ही कुल को
दो-दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां
ना बुरे हैं बेटे, न छोटी हैं बेटियां
हीरे अगर हैं बेटे तों मोती हैं बेटियां
यही हैं रस्में, विधी का विधान है
मुट्ठी में भरें नीर सी होती हैं बेटियां
बेटियां धन पराया होती हैं ये सुनने में आया है
दर्द विदाई का है क्या यह आज समझ में आया है
ग़म और खुशी का यह रिश्ता कैसा विचित्र है भाई
हमारी ही परछाई आज हमसे ले रही है विदाई।।
- रजनी नरूला
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