Kapil Meeraj  
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Joined 16 February 2017


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Joined 16 February 2017
3 APR AT 14:37

वो इतना खूबसूरत था
कि बहुत मुश्किल लगती थी मुझे
ये सोचने में
कि वो इतना भी खूबसूरत नहीं

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5 MAR AT 12:13

खुद अपनी ही आवाज
ऐसे सुन रहा हूं मैं
जैसे कोई आदमी
दूसरे आदमी से बात करता है

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25 FEB AT 16:13

मुझसे किसीने न प्यार किया था
मुझे जिंदगी ने तैयार किया था

ये दिल कभी फूल न बन पाया
मैंने एक फूल का तिरस्कार किया था

बहुत मासूम सा था वो बच्चा
अपने अंदर जिसे मार दिया था

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25 FEB AT 0:14

मैं रोते हुए लोगो को समझ तो लेता हूं
मगर उन्हें कभी गले नहीं लगाता
शायद जब मैं रोया था
तो मुझे भी किसी ने गले नहीं लगाया था

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23 FEB AT 10:30

मैं कोई चांद हूं मेरी रोशनी चाहते है सभी
जरूरत के हिसाब से मुझे चाहते है सभी

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21 FEB AT 11:43

तुझे समझाऊं तेरा दिल भी बहलाऊं मैं
सब कुछ कर लिया अब कहां जाऊं मैं

मोहब्बत किस्मत होती है मजबूरी नहीं
जो मुझे ही जलाए वो आग क्यों लगाऊं मैं

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17 FEB AT 20:10

मौसम खुला और फिर मयखाना खुला
कई महिनों बाद आना जाना खुला

एक फासला हर शक्श से लेकर चले
हम खुले कभी न हमसे जमाना खुला

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16 FEB AT 19:05

इश्क हो जाए नाकाम भी तो
शायद मिल जाए आराम भी तो

अभी दुनिया को कैसे ठोकर मारें
अभी करने हैं कितने काम भी तो

नया महबूब रुककर ढूंढ लेना
दिल को चाहिए आराम भी तो

सभी ले आए मरहम की कटोरी
कोई लेकर के आओ जाम भी तो

अकेले मेरी बदनामी न होगी
आएगा उस 'जालिम' का नाम भी तो

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16 FEB AT 12:24

'हसरतें' जिस मिट्टी मैं दफन होती हैं
उसी मिट्टी में 'ग़ज़ल' पैदा होती है

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12 FEB AT 14:16

सुनहरी धूप में तुम्हें देख रहा हूं
और सोच रहा हूं
कौन ज्यादा खूबसूरत है
तुम,सुनहरी धूप
या मेरा नसीब

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