कोहरे से पटा हुआ था.....
नज़र नहीं आया हमें "ताजमहल"
वैसे ही जैसे उन्हें नजर नहीं आती हमारी मोहब्बत-
खामोशी सबसे बड़ा शोर है
जो चल रहा होता है भीतर कहीं
बाहर आने को आतुर
सही वक्त के इंतज़ार में...
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उसे वो नहीं मिल पाया जिसके लिए वो बेकरार है
खुदा उसे वो दिलाये जिसका वो हकदार है-
ज़िन्दगी क्या है?
कुछ सर्दियां कुछ गर्मियां
कुछ बरसातें कुछ पतझड़
मौसम सी ही है ये ज़िन्दगी
फर्क सिर्फ इतना सा है कि
यहां मौसम नियम नहीं मानते...
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जो बातें तू बिना कहे जान जाती थी.....
यहां चीखने चिल्लाने पर भी नहीं सुनता कोई
सुन,
ये दुनिया बहरी है 'माँ'-
वो फूलों की मुरझाई पंखुड़ियां जमा करती है
रंग भरने के लिए
सोचिये.....
कितनी जीवंत होगी उसकी सोच।-
गोत्र बताते बात बात पर
समझते खुद को ज्ञानी हो
ऊंच नीच का भेद फिर कर
बन जाते अज्ञानी हो
जन्म लिया ब्राह्मण कुल में,
तो क्या तुम सबसे श्रेष्ठ हो?
मांस मदिरा का सेवन जीवन में,
तुम तो सबसे भृष्ट हो...
समाज के बनाये नियम कहकर
कितने ही तुमने अत्याचार किये
क्षुद्र रहे बस तुमसे दबकर
पल पल तुमने वार किए।
क्या रक्त तुम्हारा अलग है उनसे?
क्या तुमको अमरता प्राप्त है?
क्या अंत तुम्हारा निश्चित नहीं?
क्या तुम्हें नहीं संताप है?
स्वीकारो,
हम अलग नहीं हम एक हैं
सर्वश्रेष्ठ बस वही है, जिसके कर्म सभी नेक हैं
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कुछ नया करो न करो
पर कुछ न कुछ करते रहना
रुकना मत,
तुम रुकना मत
जीवन में रंग भरते रहना
मुश्किलें घबराहटें तुम्हें रोकने आएंगी
उनसे संभलकर आगे बस बढ़ते रहना
कुछ न कुछ करते रहना
बदलाव जीवन का दूसरा रूप है
इसे अपनाना
स्वयं तुम वही रहो बेशक
जीवन को बेहतर करते रहना
अवसरों को तलाशना, चुनौतियों को स्वीकारना
दिल की सुनकर दिमाग से काम लेना
बस कुछ न कुछ करते रहना
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वो लड़की रात को "bike" चलाने की "practice" करती थी
शायद डरती थी.....
दिन के उजाले में कुछ अलग करने से-
Dear चाय
मुझे इश्क़ है तुमसे...
हाँ हाँ सच्चा वाला इश्क़
वो इश्क़ जो मुझे और किसीसे नहीं
तुम्हारे हर एक मिजाज से इश्क़
तुम्हारा वो हल्का भूरा रंग
उसमें मिली चीनी की मिठास
तुम्हारी मंत्रमुग्ध कर देने वाली सुगंध
उसमे घुले दूध का स्वाद
तुम मुझे एक हो जाना सिखाती हो...
तुम मेरी सुबह की रौनक
शाम का सुकून हो
तुम मेरे हर बदलते मिजाज की साक्षी हो
Dear चाय
मुझे इश्क़ है तुमसे...
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