Kamran Adil   (Kamran Aadil)
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Joined 30 April 2018


Joined 30 April 2018
7 MAR 2021 AT 15:31

मोहब्बत खा गई मेहनत हमारी
किसी ने दी नहीं उजरत हमारी
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محبت کھا گئی محنت ہماری
کسی نے دی نہیں اجرت ہماری

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27 JUL 2020 AT 13:11

ग़ज़ल

शोर है जा बजा उदासी का
फिर कोई दर खुला उदासी

इब्तिदा इश्क़ में मसर्रत है
इंतिहा सिलसिला उदास का

फिर वो ही याद दौरे माज़ी की
फिर वही मसअला उदासी का

क़हक़हा मार कर उदासी में
दिल दुखाया गया उदासी का

हमसे तो ख़ैर कुछ न हो पाया
आपने क्या किया उदासी का

शहर के ख़ुश मिज़ाज लोगों ने
क्युँ चुना रास्ता उदासी का

इक तरफ़ भीड़ हँसते चहरों की
इक तरफ़ आईना उदासी का

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10 JUL 2020 AT 21:49

تیرہ شبی کے ہوش اُڑانا تو آگیا
یعنی ہمیں چراغ جلانا تو آگیا

तीरा-शबी के होश उड़ाना तो आ गया
या'नी हमें चराग़ जलाना तो आ गया

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30 JUN 2020 AT 2:51

ख़्वाब हो जाता है हर ख़्वाब कहाँ तक देखें
ज़िन्दगी हम तुझे गरक़ाब कहाँ तक देखें

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24 JAN 2020 AT 16:49

क्या अजब सी हवा चली अब के
रेत आँखों में भर गई सब के

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3 SEP 2019 AT 0:31

(ग़ज़ल)
इसके बारे जो समझना है समझ सकते हो
वैसे ऐ दोस्त ये दुनिया है समझ सकते हो

क्यों मिरी नींद मुक़म्मल नहीं होती तुम बिन
क्यों मिरा ख़्वाब अधूरा है समझ सकते हो

कैसे पिंजरे में गुज़रती है परिंदे की हयात
तुमने तो हिज्र गुज़ारा है समझ सकते हो

पीने वाला भी कोई ऐसे बहकता है भला
तजरबा ये मिरा पहला है समझ सकते हो

मेरे चहरे की उदासी पे ज़रा ग़ौर करो
मेरे अन्दर जो ख़राबा है समझ सकते हो

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25 AUG 2019 AT 0:44

ग़ज़ल

सोज़िशे-दिल की वज़ाहत भी नहीं होती है
हमसे तो ठीक से वेहशत भी नहीं होती है

धूप में चल भी नहीं पाते मिरे शहर के लोग
इन से सायों की हिफाज़त भी नहीं होती है

जिस क़दर हमको मोहब्बत ने रुलाया है लहू
इतनी दुशवार तो नफ़रत भी नहीं होती है

ज़ख़्म ऐसे कि दिखाए भी नहीं जा सकते
दर्द ऐसा की वज़ाहत भी नहीं होती है

उसने इस तौर से रँगों को भरा है मुझ में
उस मुसव्विर से शिकायत भी नहीं होती है

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10 JUN 2019 AT 3:58

है मुक़म्मल जो मिरी ईद तिरी दीद से है
वरना क्या फ़ैज़ मिरी जान मुझे ईद से है

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22 MAY 2019 AT 15:00

कोई रंगों से बयाँ करता है अशआर यहाँ
कोई अशआर से तस्वीर बना देता है

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22 MAY 2019 AT 3:16


किसी मुक़ाम पे मुझ से जुदा तो होना था
हवा मिज़ाज था उसको हवा तो होना था

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