ग़ज़ल
शोर है जा बजा उदासी का
फिर कोई दर खुला उदासी
इब्तिदा इश्क़ में मसर्रत है
इंतिहा सिलसिला उदास का
फिर वो ही याद दौरे माज़ी की
फिर वही मसअला उदासी का
क़हक़हा मार कर उदासी में
दिल दुखाया गया उदासी का
हमसे तो ख़ैर कुछ न हो पाया
आपने क्या किया उदासी का
शहर के ख़ुश मिज़ाज लोगों ने
क्युँ चुना रास्ता उदासी का
इक तरफ़ भीड़ हँसते चहरों की
इक तरफ़ आईना उदासी का
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