"वह मूक फिल्मों का दौर था. इस छोटे से कस्बे में कोई स्थायी थियेटर तो था नहीं ,बस कभी -कभी चलता -फिरता सिनेमा दिखाने वाली कंपनी आ जाया करती थी.या फिर सालाना लगने वाली नुमाइश के दौरान पूरे पखवारे सिनेमा देखा जा सकता था." - ©kamal kant, Bengaluru
"वह मूक फिल्मों का दौर था. इस छोटे से कस्बे में कोई स्थायी थियेटर तो था नहीं ,बस कभी -कभी चलता -फिरता सिनेमा दिखाने वाली कंपनी आ जाया करती थी.या फिर सालाना लगने वाली नुमाइश के दौरान पूरे पखवारे सिनेमा देखा जा सकता था."
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