वो उपन्यास सी है उस ज़माने में जब
लोगो को पसन्द आते है अखबार,
ना ही लघु कथाएं ना ही कहानियां।।
तुम चाहते हो सुबह की शुरुआत
हो चटकारे भरी खबर से
मोटी सुर्ख़ियों में लिखी
चटपटी बातों से ,
वो ठहरी एक कहानी
जिसकी शुरुआत में शायद हासिल हो
तुम्हे बस फ़क़त चार बातें ।।
तुम चाहते हो पन्ना पलटते ही
शहर बदल जाए ,
उसे तुम पढो घण्टे भर
तब भी वो शायद बैठे मिले उसी कुर्सी पर
कुछ उधेड़ बुन करती अपने दिमाग में ।।
तुम चाहते हो पढ़ना बातें रंगीन
पन्ने पर सजी पंक्तियों में ,
उसकी कहानी मिलेगी तुम्हे
काले , सभी एक जैसे शब्दो में
शुरू से अंत तक ।।
कुछ नही मिलेगा मन लुभाने वाला
उसके पास तुम्हे,
हाँ मिल सकता है शायद थोड़ा
सुकून , कुछ अनुभव और
एक जीवंत "उपन्यास" ।।।।
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