तुझको क्या चाहिए चल मुझे तू बता,
बडे़ दिनों से लग रहा तू मुझे खफ़ा खफा।
जो कल सर्द मेें था ठिठुरता,
भूख से पेट सिकुड़ता,
आज तन ढके हुए,पेट भी भरे हुए
फिर भी तेरा मन क्यों है कचोटता?
तुझको क्या चाहिए चल मुझे तू बता।
नींद क्यों उड़ी हुई, चैन भी जुदा है क्यों?
सांस चल रही तेरी,फिर भी मुर्दा है क्यों?
राह लंबी अभी, तलब तेरी पूरी नहीं
इस तलब को लिए न जाने गमदीदा है क्यों?
बेहतर कोई तुझसे है,और तू किसी से है
ये जानकर भी दूसरों से स्वयं को क्यों तौलता।
अपनी कमियों को गिन ख़ुद को कम मोलता
तुझको क्या चाहिए चल मुझे तू बता।
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