Juhi Grover  
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Joined 17 July 2018


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Joined 17 July 2018
12 NOV 2023 AT 16:35

रिश्तों को ज़िन्दा रखने के लिए ज़रूरी है,
स्वयं का अस्तित्व स्वयं ही खत्म कर लेना।

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31 AUG 2023 AT 23:55

रिश्ता कह देने भर से ही रिश्ता निभा जाते हैं,
केवल एहसासों को ही नई ज़ुबान दे जाते हैं,
बिना कहे ही हर बात दिल की समझ जाते हैं,
इतना कुछ होते हुए भी छोटे ही बने रह जाते हैं।

आज कल सगे भी कहाँ अपने ही हो पाते हैं,
पराये जहाँ परायों को ही अपना बना जाते हैं,
क्या ले दे कर आये थे, क्या ले दे कर जाना है,
बस शब्दों का बोझ भी आसानी से उठा जाते हैं।

ज़िन्दगी जहाँ कहीं इक बोझ सी बस बन जाए,
हम हैं न, बिन कहे ही बस भाव जगा जाते हैं,
असलियत में कितने ही रिश्ते साथ छोड़ जाए,
रिश्तों की नई परिभाषा ही बना जाते हैं।

खून के रिश्ते तो कहाँ साथ ही चल पाते हैं,
ऐसे रिश्तों की सच्चाई तो हम जान ही जाते हैं,
जब बीच राह खून के रिश्ते साथ यों छोड़ जाए,
एहसासों के रिश्ते ही तो उम्रभर साथ चल पाते हैं।

सगे भाइयों से ज़्यादा बहनों का दर्द समझ लेते हैं,
दूर ही सही, निस्वार्थ भाव दिल में जगा ही जाते हैं।
आँधी-तूफ़ान बन कर के भी कभी यों मिल जाते हैं,
राखी का कर्ज़ चुका रक्षाबंधन का अर्थ बता जाते हैं।

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16 OCT 2022 AT 17:07

कितने लापरवाह हो जाते हैं अपने लिए हम,
और कितने संवेदनशील हो जाते हैं अपनों के लिए वही हम।

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6 FEB 2022 AT 12:26

सुरीले युग का बेशक अन्त हो गया,
मग़र यादों का युग नहीं जाएगा कभी।— % &

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7 JAN 2022 AT 17:02

सर्दी की वो शाम आज भी याद है मुझे,
कड़ाके की उस ठण्ड में टपरी की चाय।

हाथ हिला के पुकारना भी याद है मुझे,
चाय न पीने पिलाने की तुम्हारी वो राय।

चाय के नाम की वो राय भी याद है मुझे,
साथ ही याद है हाथ हिला बोलना हाय।

बिन बताये चले जाना भी याद है मुझे,
जाने से पहले नहीं की तुमने कभी बाय।

हर शाम देखने की आदत याद है मुझे,
छोड़ ही नहीं सका आज भी मैं वो चाय।

कल्पना का सच न होना ही याद है मुझे,
वरना छूट न जाती तुम्हारी दुश्मन वो चाय।

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26 DEC 2021 AT 12:41

मैं कभी अर्द्ध विराम
या फिर कभी अल्प विराम ही बन पाई थी,
तेरे आने के बाद पूर्ण विराम हो गई,
और.....
और.....
..... .....
तेरे जाने के बाद प्रश्न चिन्ह बन कर रह गई,

अब न ही अर्द्ध विराम
या फिर अल्प विराम ही बन सकती हूँ,
और.....
और.....
..... .....
पूर्ण विराम बन कर फिर से प्रश्न चिन्ह नहीं बनना है,
प्रायः विस्मयादिबोधक चिन्ह बन कर उद्धरण चिन्ह में आने का भी शायद अवसर मिल ही जाए,

मग़र.....
..... .....
निर्देशक चिन्ह बन कर किसी के संवाद का विषय बनना नहीं चाहती मैं।

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23 DEC 2021 AT 0:36

जहाँ रिश्तों में प्यार हो,
खुशियों में बनावट नहीं होती।

दिल के रिश्तों का आधार हो,
लगाव में गिरावट नहीं होती।

खून के रिश्ते चाहे निराधार हो,
यों चेहरे पे मिलावट नहीं होती।

तुम यों रिश्तों की बहार हो,
दुआएँ सिर्फ सजावट नहीं होती।

तुम्हारा जन्मदिन यों त्यौहार हो,
फीकी जिस घर की मुस्कराहट नहीं होती।

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22 DEC 2021 AT 11:56

ग़ैर तो ग़ैर ही रहेंगे, भ्रम रख कर क्या करेंगे,
अपेक्षाएँ बढ़ेंगी जब, शिकवे स्वयं होने लगेंगे।

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19 DEC 2021 AT 13:16

जहाँ रिश्तों में प्यार हो,
खुशियों में बनावट नहीं होती।

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22 NOV 2021 AT 17:15

गंगा की पवित्रता, तवायफ़ की पाकीज़गी

( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)

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