उन की कुर्सी पे चलो आओ पटाख़े बाँधें
जब वो आएँ तो पटाख़ों का तड़पना देखें
हम भी शागिर्द-ए-सितम-गार हैं इतना मानें
पीछे पीछे ही भगाएँ तो मज़ा आ जाए
उन की जो चीज़ है चुपके से छुपा दें आओ
पान बीड़ी की जो डिबिया है उड़ा दें आओ
हम शरारत के नए जाल बिछा दें आओ
वो किसी जाल में आएँ तो मज़ा आ जाए
वो अगर सामने आ जाएँ तो मिल कर चीख़ें
वो कहें चुप रहो हम और भी हँस कर चीख़ें
और वो आँखे दिखाएँ तो अकड़ कर चीख़ें
उन को दीवाना बनाएँ तो मज़ा आ जाए
~ हसरत जयपुरी
-