Jitendra Gupta   (मीत)
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Joined 19 January 2017


Joined 19 January 2017
8 OCT 2021 AT 22:35

रख मेरे हाथ पर अपने हाथ का भरोसा
की अब हम बिछड़े तो मौत आ जाएँ

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17 MAR 2021 AT 16:31

कहता हूँ मैं भुला दूँगा तुम्हें आज
भूल जायेंगे हम दोनों ही
भुला देना तुम भी
मेरी अगली पिछली बातों को
डाल देना मिट्टी मेरे आँसुओ पर
रौंदते हुए चल देना मुझें मगर सुनों
कुछ पल तो ठहर जाओ
समेटने दो मुझें मेरी मन्नतों के पल
जानें दूँगा तुम्हें ना रोकूँगा कभी
लेकिन याद रखना तुम
मिलूँगा तुम में ही मेरे सागर हो तुम

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24 NOV 2020 AT 20:58

जब दीवारों में दरार आतीं हैं तो
दीवारें गिर जातीं हैं पर
जब दिल में दरार आतीं हैं तो
दीवारें बन जातीं हैं

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4 NOV 2020 AT 19:19

हाथ भी तो वो शख्स मिला कर ना गया
जिसको चाहा था सीने से लगा कर रोना

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18 OCT 2020 AT 0:08

सुना आज पहली बार
होतीं हैं हाथों पर
एक रेखा पागलपन की भी
देखा मैनें जो गौर से
मेरी सारी रेखाओं पर
छाया थीं तुम्हारी
हर रेखा दो-दो थीं
हर एक मैं तुम थें
पागलपन की रेखा
इसी को कहतें हैं शायद

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3 OCT 2020 AT 11:33

हँसते हैं यूँ हँस कर
रुला जातें हैं लोग
मिलतें हैं यूँही मिलकर
जुदा हों जातें हैं लोग
पल दो पल की मोहब्बत को
उम्र भर का साथ समझना
मोहब्बत भी करतें हैं और
खफ़ा भी हों जातें हैं लोग
नसीब में प्यार ना था
जो मुझें मिला ही नहीं
करके इज़हार-ए-मोहब्बत भी
बेपरवाह हों जातें हैं लोग
अब किस से शिकवा करें
अपनी मोहब्बत का
करके वफ़ा का वादा
बेवफ़ा हों जातें हैं लोग

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2 OCT 2020 AT 15:04

दिल ऐसी जगह ढूँढता हैं फिर रहा
जहाँ किसी को किसी से मतलब ना होता
जहाँ कोई किसी के लिए ना रोता
जहाँ ना कोई ख़ुशी ना कोई मातम होता
जहाँ हर कोई अपनी धुन में मग्न होता
जहाँ प्यार का नामोनिशान ना होता
जहाँ दौलत का किसी को गुमान ना होता
जहाँ हवा चलकर सिर्फ पत्तो को हिलातीं
जहाँ आँधियों का ना कोई नामोनिशान होता
जहाँ समुन्दर तो होता पर लहरें ना होतीं
जहाँ मेरी आँखें किसी के लिए रात दिन ना रोती
ऐसी कोई जगह हो तो बताना मुझें

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21 SEP 2020 AT 14:21

बेशक़ मोहब्बत छोड़ दी मैनें मगर
अभी उसकी यादों का सिलसिला बाकी हैं
भले ही दूर हो गए सारे शिकवे और शिकायतें
मगर उसकीं जुदाई का गिला अभी बाकी हैं
लिख कर नाम ज़मीन पर बेशक़ उसनें मिटा दिया
मगर मेरें नाम की हीना वो जो हाथों में रचाती थीं
मेरें घर के दराज़ में अभी तक वो हीना बाकी हैं

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19 SEP 2020 AT 10:59

जान मांगी उसने तो मैनें ये समझ कर दे दी
कहीं इन्कार के सदमें में वो अपनी जान ना दे दे

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17 SEP 2020 AT 21:05

वो अक्सर मुझसे कहतीं थीं
वफ़ा हैं ज़ात औरत की
मगर जो मर्द होतें हैं
बहुत बेदर्द होतें हैं
किसी भँवरे की सूरत
गुल की खुशबू लूट जातें हैं
सुनो तुम को कसम मेरी
रिवायत तोड़ देना तुम
ना तन्हा छोड़ कर जाना
ना ये दिल तोड़ कर जाना
मगर फ़िर यूँ हुआ एक दिन
मुझें अनजान रास्ते पर
अकेला छोड़ कर उसने
मेरा दिल तोड़ कर उसने
मोहब्बत छोड़ दी उसनें
वफ़ा हैं ज़ात औरत की
रिवायत तोड़ दी उसने

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