ये अलग बात है मुकद्दर नही बदला अपना
एक ही दर पे रहे है , दर नही बदला अपना
इश्क का खेल है , शतरंज नही साहिब
मात खाई है ,लेकिन घर नहीं बदला अपना
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नज़र ने नज़र को नज़र भर के देखा.
नज़र को नज़र की नज़र लग गईं.-
मैंने जो कुछ भी सोचा है, वो एक दिन वक़्त आने पर कर जाऊंगा ...
तुम मुझे जहर लगते हो , एक दिन तुम्हे ही पी के मर जाऊंगा .-
नाप लेता है जब मेरा दर्जी..... तो पूछता है मुझसे.
अपने अगर जादा हो तो ....आस्तीन में गुंजाइश रख दूं.-
शहर में ना जाने कहा से कुछ अनजाने आए है
पता नहीं मिलने मुझसे या फिर सताने आए है
सारे ज़माने में बंट गया है वक़्त उनका फिर.
मेरे हिस्से में फिर उनके सारे बहाने आए है.-
उन चमचों के सिखाए हुए यदि काम करोगे.
यदि अब कोई कागज ,हमलोगो के नाम करोगे.
ना देखोगे कागज , ना देख पाओगे खुद को .
हाथ धोते हुए अपनी नौकरी का खुद ही इंतजाम करोगे-
एक बात सोचने में रात हो गई है.
मेरी जीत हुई , या मात हो गई है.
लाख चाहूं उसे भूलना जर्रे जर्रे में हर रोज .
मगर ,इक हादसे में उससे मुलाकात हो गई है.-
लाख चाहू की तुझे याद ना करु.
लेकिन इरादे अपनी जगह..
और बेबसी अपनी जगह..-