Jay   (© "जिज्ञासु")
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Joined 21 June 2017


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Joined 21 June 2017
26 MAR AT 16:35

रहने दो ये अदाकारी तुम अपने झूठे रिश्तों की
मैं अकेला ही काफ़ी हूं अपने ज़िंदगी के लिए

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15 FEB AT 13:59

न किसी शय् की मोहताज़ मोहब्बत
न किसी लफ्ज़ की मोहताज़ है
हर इक दायरे से आज़ाद मोहब्बत
फ़क़त दिल की इक एहसास है

कर दे जो हर इक ग़म-ओ-ख़ुशी से आज़ाद
ज़िंदगी में, वो शख़्स ज़िंदगी है मिरे
मिरे हर इक जज़्बात है, सिर्फ़ शख़्स वही
मिरे ज़िंदगी के लिए बेहद ख़ास है

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21 DEC 2023 AT 8:57

जानकर मिरी दास्तान-ए-ज़िंदगी
अब क्या करोगी तुम
बचा हुआ इक झोंका हूं महज़
महसूस करो मुझको

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13 JUN 2023 AT 11:45

चुभती नहीं है बातें जिनकी अक्सर मगर
चुभ जाती है इक ख़ामोशी भी उनकी
जो बोलते बहुत है हमेशा इधर उधर मगर
हो जाते हैं ख़ामोश इक रोज़ अचानक

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27 MAY 2023 AT 15:54

तबाही का हमें वो मंज़र दिखा के
सत्तासीन हो बैठे हैं खंजर छिपा के

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24 APR 2023 AT 20:54

मैं गुनाहगार हूं
आदत है मिरी गुनाह करने की
सच के खातिर जीने की
सच के खातिर हीं मरने की

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24 MAR 2023 AT 15:51

Alamat-e-Hawadis Hai
Ye Mohabbat Yaaron
Kisi ka hoke hum
khud ka bhi khnha
Fir rahte Hain yanha !

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8 OCT 2022 AT 10:32

सह के हर इक बात गलत भी
ख़िलाफ़ अपने, न जाने हर लम्हा
किस-किस आग में जला हूँ मैं
तुम कहते हो ज़िंदा हूँ ! सुनो, मौत
से पहले ही कई दफ़ा मरा हूँ मैं

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7 OCT 2022 AT 13:33

तराना-ए-ज़िंदगी
समझ आये भी तो कैसे !
हर शख़्स तलाश में है
ख़ुदी का यहाँ, ख़ुदी को किसी
और में फिर पाये भी तो कैसे !

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6 OCT 2022 AT 14:58

आप चाह के भी मोल-भाव से
खुद को यहाँ बचा नहीं सकते
अजी, बिकने को मौज़ूद हो बाज़ार में ज़नाब !
क़ीमत ख़ुद की यहाँ लगा नहीं सकते

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