19 JAN 2018 AT 21:30

बिस्तर के सिरहानों में
तकियों में छिपकर बैठे हैं
ये लम्हें हैं जो यादों के
अकड़ को ऐंठे बैठे हैं
कैद कर रख्खा है मुझको
यादों के गुलदस्तों में
मैं फूल बन जाता हूँ
लेकिन काँटे चुभते रहते हैं

- JS