14 MAR 2018 AT 21:01

माँ से बिछड़ कर कुछ सम्भलने लगी हूँ मैं,
थोड़ी समझदार थोड़ी जिम्मेदार होने लगी हूँ मैं ।

लोग कहते हैं बड़ी खुशमिजाज हूँ मैं,
पर सपनों के टूटने का दर्द महसूस करने लगी हूँ मैं ।

सबको कहते सुना है बड़ी बेबाक हूँ मैं,
पर, अब थोड़ी चुपचाप रहने लगी हूँ मैं ।

सुना है टूटे रिश्ते जुड़ते नहीं कभी,
बस उन्ही कुछ रिश्तों को जतन से जोड़ने में लगी हूँ मैं ।

सबके साथ रहना आदत थी कभी मेरी,
अब सबसे कुछ अलग सी रहने लगी हूँ मैं ।

कभी अपने आँगन की नटखट धूप थी मैं,
आज कोने में लगे 'तुलसी' के पेड़ के जैसे बनने लगी हूँ मैं ।

- ठकुराइन