Jai Kumaar   (✍️ Kumaar Ki Kalam Se ✍️)
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Joined 23 December 2016


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20 DEC 2023 AT 19:38

तेरी यादों से कहना जहाँ हैं वहीं जम जायें..
वैसे भी बाज़ार में हवा है कि ठंड बहुत है।

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14 DEC 2023 AT 13:58

उंगलियों को बदन पर थिरकने की इज़ाजत दे दो,
उभारों पर अधरो की लहकने की आदत दे दो,
होंठ ऊपरी हो या निचले हिस्से के जान ए बहार,
दोनों को ता - उम्र मेरे नाम की हिफ़ाज़त दे दो॥

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13 DEC 2023 AT 19:49

स्वेद बूंदे देगी गवाही तेरे मेरे पिघलते अरमानों की हुज़ूर ए आला
जब जब जिह्वा खो देगी होश, मेरे होंठ बनेंगे तेरे होंठों का प्याला!

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13 DEC 2023 AT 8:56

बेगैरत सी शख्सियत लिए, वो घूमा दर ब दर
हर कोई मिला उसे बस आजमाइश के ही वास्ते

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6 DEC 2023 AT 18:49

किसी रोज़
गिरा दूँ ग़र
पल्लू अपनी
लाल साड़ी का..
क्या तुम
काम छोड़
मुझे बाहों में भरोगे?
मेरे सीने में छिपे भाव समझ
मुझे ख़ुद में क़ैद कर लोगे?
प्यास जो दिखेगी आँखों में
उन्हें होंठो से तृप्त कर दोगे?
ग़र तुम हाँ कह रहे हो,
तो सुनो! मैंने आज
लाल साड़ी पहनी है..

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30 NOV 2023 AT 18:55

किताबों,
पन्नों,
पंक्तियों,
शब्दों,
अक्षरों में
क्या ही
कितना ही
लिखा होगा,
तुम सुनो
मुझे तो
तुम पर
तुम्हारे
बदन पर
पूरा ग्रंथ
लिखना है!

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29 NOV 2023 AT 9:30

ये शिकवे, ये शिकायतें, ये अदा नाराज़गी की
तुम खूबसूरत, तुमसे आती महक ताज़गी की|

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10 NOV 2023 AT 10:55

ये जो
घुमाव हैं
कमर से
थोड़ा ऊपर
और छाती से
थोड़ा नीचे
मन है
इरादा है
है कसक
ये पल्लू
जरा सा
हम खींचे,
हम मचले तो
दोष ना देना
मदहोश हो तो
फिर होश ना देना
आना इतना
करीब के
तुम्हारे बदन की
बगिया को
हम लबों से
सारी रात सींचे

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8 NOV 2023 AT 18:01

तेरे होंठ,
तेरे गाल
तेरी जुल्फें,
तेरे बाल
तेरा चेहरा,
तेरी चाल
सब के सब
किताब के
आखिरी
पन्ने है,
ये जो
झुकी सी नज़र
है जिसमें असर
मदहोश करती आंखे
इस किताब की
अनुक्रमणिका है॥

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7 NOV 2023 AT 20:12

जो भी हो,
जब भी हो
पाक होना चाहिए
मिलन ऐसा हो
कि दोनो का बदन
ख़ाक होना चाहिए॥

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