21 MAR 2018 AT 0:27

बे चैन अपने दिल को बहलाऊँ किस तरह
दर्द ए जुदाई आखिर ठुकराऊँ किस तरह

मजबूरियाँ ही किसमत करती रही रक़म
दुनिया ने जो दिया मुझे लौटाऊँ किस तरह

अपनी सतह से ऊपर तूफाँ निकल गये
ज़ुलमत की आँधियों से टकराऊँ किस तरह

जीने की पास मेरे इक ही वजह है बस
यादों को तेरी दिल में दफनाऊँ किस तरह

सरहन मिजाज है बस इसमें बुरा है क्या
हाँ बे हया नहीं पर शरमाऊँ किस तरह

खामोश हूँ मैं बस कोई गुनहगार तो नहीं
मेरा कुसूर क्या है पचताऊँ किस तरह

जुलमत की आधियाँ है"जाबिर"शबाब पर
इन आँधियों में रोशनी फैलाऊँ किस तरह

- Ayaaz saharanpuri