रोहन कौशिक  
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Biassed.
Joined 9 September 2017


Biassed.
Joined 9 September 2017
5 DEC 2022 AT 16:59

हमसे यह अपराध हुआ था,
उसको अपना मान लिया था,
और सज़ा में हमने पाया, युग-युग का एकांत।
रहें कहाँ तक शांत?

दुनिया ने जो-जो समझाया,
हमने सबको थोथा पाया,
जीवन से ही हार रहे हैं, जीवन के सिद्धांत।
रहें कहाँ तक शांत?

पीड़ा का क्षण-क्षण गाना था,
दर्द सहज ही समझाना था,
लेकिन भावों की झोली में, कम रह गए तुकांत।
रहें कहाँ तक शांत?

- रोहन कौशिक

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19 JUL 2022 AT 15:44

सूरज-सूरज कहकर दुनिया,
तुमको आग में झुलसा देगी।
- रोहन कौशिक

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12 JUN 2022 AT 12:49

आँखों से फ़लसफ़ी की जो देखो तो ऐब हैं,
दुनिया तमाशबीन की नज़रों से देखिए।
- रोहन कौशिक


(फ़लसफ़ी - दार्शनिक)

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28 MAY 2022 AT 14:12

और कितने वर्ष?
हम भरम में जी रहे हैं,
या सही में बढ़ गए हैं,
किस दिशा में चल रहा है, क्या पता संघर्ष?
और कितने वर्ष?
कल्पना तो कल्पना है,
पर कहो प्रत्यक्ष क्या है?
स्वप्न में ही दिख रहा है, आजकल उत्कर्ष।
और कितने वर्ष?
धारणा का फेर है यह,
सब्र है या देर है यह!
यह प्रतीक्षा पी न जाए, योग्यता का हर्ष!
और कितने वर्ष?
- रोहन कौशिक

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31 MAR 2022 AT 14:10

वो जिन्हें हिज्र रास आता है,
वस्ल का जश्न क्यूँ मनाते हैं?

तीरगी की मुराद क्यूँ न करें?
लोग जो रोशनी बनाते हैं।

यूँ तो चालाक हो गए हैं मगर,
उसकी बातों में आ ही जाते हैं।

- रोहन कौशिक

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13 FEB 2022 AT 15:28

सवाल पूछने वाले जवाब सुन तो ले।
बही ग़लत ही सही, पर हिसाब सुन तो ले।

कुछ इसलिए भी मैं जम्हूरियत का क़ाइल हूँ,
जो ख़्वाब देख न पाए, वो ख़्वाब सुन तो ले।

- रोहन कौशिक

क़ाइल - मुरीद, प्रशंसक*
जम्हूरियत - लोकतंत्र, Democracy*

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4 NOV 2019 AT 15:55

सबको अपने हित की बातें करनी थीं,
हम पागल थे, मुद्दा लेकर बैठ गए।
- रोहन कौशिक

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16 NOV 2021 AT 14:16

कितनी टूटी हुई है, किसको पता?
एक मूरत जो सजी रहती है।
- रोहन कौशिक

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9 SEP 2021 AT 14:54

इन'आम - पुरस्कार*






ये अदाकार होने का इन'आम था,
मेरे आँसू की क़ीमत गिरा दी गई।
- रोहन कौशिक

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3 AUG 2021 AT 14:44

शिकायत कम से कम क्या है, पता तो हो।
ज़रूरत कम से कम क्या है, पता तो हो।

हमारा दुख नहीं समझे, न समझो तुम,
मुसीबत कम से कम क्या है, पता तो हो।

ख़ुदा पर है यक़ीं या बे-यक़ीनी है,
इबादत कम से कम क्या है, पता तो हो।

मुहब्बत को समझना ग़ैर-मुमकिन है,
अदावत कम से कम क्या है, पता तो हो।

'जबर' कुछ क़ायदे दुनिया के तोड़े भी,
बग़ाबत कम से कम क्या है, पता तो हो।

- रोहन कौशिक

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