jaan veer   (Meghna)
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Insta id.....meghnaagarwal94.20
Joined 25 April 2019


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8 FEB 2020 AT 21:01

मृत चीजें कभी वापिस लौटकर नहीं आती

फिर चाहे वो इंसान हो, रिश्ते हो या अहसास

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23 OCT 2019 AT 16:49

मोहब्बत के खेल में बाजी तो किस्मत मार जाती है
दो दिलों को मोहरा बनाकर खेल वो जीत जाती है

कैसे सही होगी कृष्ण ने राधा से विरह की पीङा
प्रेम के किस्से में कभी भी जुदाई नहीं सही जाती है

आत्माओ के मिलन के बाद भी फासला सदियों का
वो रोम रोम में बसकर भी सिर्फ दूरियाँ रह जाती है

हाथ थामकर उसे रोकना चाहा तो उसके लब्ज़ थे
सिर्फ एक के जाने से जिंदगी तो नहीं रूक जाती है

दिल से दिल से मिलाकर पूछे तो उससे कहे ये बातें
मगर फकत हाथ मिलाकर ही खैरियत पूछी जाती है



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21 OCT 2019 AT 21:12

वो वक्त निकाल मुझसे रोज बात किया करती है
वो दूर होकर भी मेरे पल पल का हिसाब रखती है

वो मेरी उदासी झट से पहचान लिया करती है
मेरी खुशी में वो अपनी खुशी ढूँढ लिया करती है

वो हमेशा माँ की तरह ख्याल रखा करती है
मुझे भूखे पेट घर से नहीं निकलने दिया करती है

हर मोङ पर वो हमेशा मेरे साथ खड़ी रहती है
सच में,तुम जैसी बहने नसीब से मिला करती है

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24 SEP 2019 AT 18:11

वो हमारी गली में आया और गैरो से मिलकर निकल गया
मै उसके दीदार के खातिर दरवाजे पर ही खङा रह गया

मै रूहासी आँखो से अन्दर की ओर बढता चलता गया
मगर मेरा साया उसके इंतजार में दहलीज पर ही रह गया

सुबह पता चला वो आया मगर मुझे सोये देख दबे पाँव लौट गया
और मै बेखबर रात के आँगन में उसे सपनों में ही ढूढता रह गया

उसके निशां देखकर मैं हर गली चौबारे से पूछता चला गया
मगर न जाने वो किस जहां मे गया ना कोई पता रह गया

मैं उसको तलाशते तलाशते इतनी दूर तलक पहुंच गया
पलटकर देखा तो जमाना बहुत पीछे रह गया

उसके इश्क में मैं रंगीनियों से उजड़े हुए कस्बे में बदल गया
अपने अन्दर के जिस शख्स को मै जानता था ना जाने वो कहाँ रह गया




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23 SEP 2019 AT 11:05

जुबां की पैनी
तासीर से मुझे उस वक्त कैसा लगा
तुम्हे कोई तुम सा मिले फिर
मै कहूँ बस मुझे भी ऐसा ही लगा

तुम्हें वो दिल्लगी वो ताल्लुकात
सब वक्त गुजारने का जरिया लगा
मुझ खुश्क नदी को तो वो
आब-ए-रवाँ का दरिया लगा

मेरी कराहटें मेरी खून से सनी
आँखे तुम्हे सब मजाक लगा
कभी मेरा दिल अपने सीने में
रखकर देखो तो अहसास हो
वो सब मैने कैसे सहा होगा
उस दर्द से मुनासिब तो मुझे मरना लगा


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21 SEP 2019 AT 19:38

दिल पर क्या गुजरती है जब कोई इश्क ठुकराकर जाता है
हम आज से अजनबी ठहरे जब वो ये कहकर चला जाता है

जो मिलकर भी जिन्दगी में कभी नहीं मिल पाता है
बस उसी का जिक्र गजलों और शायरियों में रह जाता है

जिसकी खातिर रह रहकर आँखो से कतरा निकल आता है
बदकिस्मती तो देखो वो बेखबर कभी हाल पूछने भी नही आता है

उस बेहतरीन को हर मोङ पर कोई ना कोई चाहने वाला मिल जाता है
मगर वो अक्सर कहता है मुझे कोई उस सा क्यो नहीं मिल पाता है

वो मेरी मोहब्बत का तमाशा बनाकर खूब मुसकुराता है
शुक्र है खुदा का मेरी वजह से उसका चेहरा तो खिलखिलाता है

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20 SEP 2019 AT 19:20

क्यू बार बार अतीत के साये में लिपटती ही जाती हूँ
जिसका अक्श जहन से मिटाना है रह रहकर उसी को याद करती हूँ

जिसको गए मुद्दतो हुए ,चलो अब उसको भूल जाती हूँ
मगर ये कैसे मुमकिन होगा अपने दिल से सवाल करती हूँ

मै किसी भी शहर ,किसी भी दीवार ओ दर जाती हूँ
मै बैचैन होकर हर तरफ उसको तलाश करती हूँ

वो मोहन तो नहीं फिर क्यू मै राधा सी बावली हो जाती हूँ
जो मेरा हो नही सकता क्यू फिर भी मै मोहब्बत उसे बेशुमार करती हूँ

जब लकीरों में उसे ढूंढ ढूंढ कर थक हार जाती हूँ
मैं खुदा के आगे रो रोकर तकदीर बदलने की फरियाद करती हूँ

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19 SEP 2019 AT 16:24

वो कसमे वादे करने वाला आज तेरे साथ खङा क्यो नहीं
अगर मोहब्बत थी तुमसे तो तुम्हारे लिए वो जमाने से लङा क्यो नहीं

खुदा के आगे तुम्हे पाने की खातिर वो झुका क्यो नहीं
वो जान दाव पर रखने की बात कहने वाला तुम्हे मुश्किल में देख रुका क्यो नहीं

तुम्हें रोता छोड़कर जाने पर उसका दिल पसीजा क्यो नहीं
वो नमाजे पढकर अल्लाह को राजी रखने वाला अपनी दीवानी को मनाता क्यो नहीं

आखिर कमी कहाँ रही, मेरी आशिकी को वो अपनाता क्यो नहीं
वो माँ बाप की मोहब्बत की कदर करने वाला मेरा इश्क समझता क्यो नहीं

दुनिया जहान में सबको प्यार मिल जाता है कहीं ना कहीं
फिर आखिर मेरे ही नसीब में कोई चाहने वाला क्यो नहीं

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18 SEP 2019 AT 16:45

खुदा ने जैसा तराशा है उस वजूद को आखिर मिटाऊं कैसे
जो मैं नहीं हूँ फिर वैसी शख्सियत बनकर दिखाऊँ कैसे

चाहे कितना भी संवारू खुद को मगर तेरे मुताबिक नजर आऊं कैसे
जब मेरी रगों में ही सादगी है तो तुझे अलबेली बनकर दिखाऊँ कैसे

हर बार तेरी कसौटी पर खरी उतरकर बताऊँ कैसे
हम मंझे हुए खिलाड़ी तो नहीं है फिर हर इम्तिहान में बाजी मारकर दिखाऊँ कैसे

ना जाने दुनिया को भुलने का लाजबाब हुनर आया कैसे
हम तो परिंदो को भी याद रखते है तो इंसान को भुलाने का ख्याल जहन में लाऊं भी कैसै

जमाने ने आखिर नफरत करने का सलीका सीखा कैसे
मुझे सिर्फ मोहब्बत ही करना आता है तो किसी को पत्थर दिल बनकर दिखाऊँ कैसे

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10 SEP 2019 AT 19:09

क्या हिन्दु क्या मुसलमान है,हर शख्स एक इंसान है
जिसने तुम्हें बनाया वो भी उस खुदा की ही संतान है

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