मुहब्बत के सफर में एक कसूर यही था
जिसको मैंने चाहा था मगरूर वही था
मैंने सोचा आग दोनों तरफ बराबर है
पर मुझ अकेले का क्या सरूर सही था

- © इश्क़ शर्मा प्यार से ✍