नज़रें शर्म से नहीं हया से वो झुकाती है
रसोई शौक से नहीं प्यार से वो महकाती है
सूरत भोली, मज़बूत कंधे और बातें करे ज़माने की
क़द छोटा, दिल बड़ा और हँस के सारे ग़म भुलाती है
और बाज़ार से ख़रीददारी वो सबकी करे
पर अपना वाला थैला अक्सर ख़ाली ले आती है
बात बात पर रोना नख़रे और ग़ुस्सा दिखाना
पर जब मुस्कुरा दे एक बार तो पूरा घर वो चहकती है
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