परिन्दा हुं एक दिन उड़ जाऊंगा इंसान हुं एक दिन सुधर जाऊंगा यकीं कर मोहब्बत पर मेरी, घुल जा मेरे जिस्म में ग़र आज चला गया तो कभी बापस न मिल पाऊंगा|| - Iqbal Ⓜalik©
परिन्दा हुं एक दिन उड़ जाऊंगा इंसान हुं एक दिन सुधर जाऊंगा यकीं कर मोहब्बत पर मेरी, घुल जा मेरे जिस्म में ग़र आज चला गया तो कभी बापस न मिल पाऊंगा||
- Iqbal Ⓜalik©