1 MAY 2017 AT 18:34

यूँ रोज का टूटना
टूट कर बिखरना
बिखरे को समेटना
समेट कर जोड़ना
और फिर से चल पड़ना
है यही ज़िंदगी...है यही ज़िंदगी।

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