Honey D. 'Awara'  
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Joined 5 November 2019


Joined 5 November 2019
24 FEB 2022 AT 20:37

कितना दूर मेरा दरवेश....
बताएँगे आहिस्ता आहिस्ता ।।
कितना नज़र में फरेब....
बताएँगे आहिस्ता आहिस्ता ।।

बर्बते दिल कलेजे पर शमा जलाए रखना ,
कितना वो खफ़्फरी भेष....
बताएँगे आहिस्ता आहिस्ता ।।

फ़रिश्ते झूम उठेंगे मिट्टी की देह पर,
कितना आफ़री, कितना काफ़री देख...
बताएँगे आहिस्ता आहिस्ता ।।

जमीन कैसे जा मिली आसमान में हनी,
कितना शफ़री कितना नेक....
बताएँगे आहिस्ता आहिस्ता ।।

:- © Honey K.

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26 JAN 2022 AT 9:02

हमेशा देर कर देता हूं मैं...

बदलते मौसमों की सैर में  
दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो, 
किसी को भूल जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं..!!

किसी को मौत से पहले
किसी ग़म से बचाना हो,
हक़ीक़त और थी कुछ
उस को जा के ये बताना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं..!!

-M.Niyazi

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26 JAN 2022 AT 8:56

हमेशा देर कर देता हूं मैं...

ज़रूरी बात कहनी हो,
कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज़ देनी हो,
उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं..!!
  
मदद करनी हो उसकी,
यार का ढांढस बंधाना हो,
बहुत देरीना रास्तों पर,
किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं..!!

- M.Niyazi

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20 JAN 2022 AT 14:55

तुम चाँद हो तुम्हे तो हक़ हैं
इतराओ, छुप जाओ...
नज़र न आओ...!!!

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16 JAN 2022 AT 20:38

कितना महरूम हूं मैं
कितना मय्यसर हैं वो
ज़र्रा सहरा हैं मुझे...!!
कतरा समंदर है मुझे...!!

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2 JAN 2022 AT 7:32

तू नया है तो दिखा
सुबह नई शाम नई ।
वरना इन आँखों ने
देखे हैं नए साल कई ।
~फैज

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25 DEC 2021 AT 16:06

ख्वाब, ख्वाब है
ख्वाब का व्यापार ना कर ।
दिल दे, या दिल ले
तोहमतें यार ना कर ।।

सर्द मौसम, खुश्क लब, जुबां खामोश
यार ऐसे तो मुझे बेज़ार ना कर ।।
सुनकर तेरा नाम मेरी आँखें नाम हो,
हनी ऐसे तो प्यार ना कर ।।

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17 DEC 2021 AT 20:37

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था ।
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।।

इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।।

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।।

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,
जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था।।

शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,
हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था।।
गोपाल दास 'नीरज'

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14 DEC 2021 AT 19:28

तुम तो ऐसे नज़र अंदाज करते हो हमको
जैसे केवल चैनल में दूरदर्शन को...

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5 DEC 2021 AT 12:29

आसमान की बिसत पर अनागिनत तारे ।
इधर उधर आखिर क्यों बिखरे है सारे ।।

एक इशारा दो कहानी नदारत जवाब,
बुलबुलों में, बुलबुले से, बुलबुले है सारे ।।

ये धुआं कहा से उठता है आखिर,
हवाएं, हवाओ को बताती है राज सारे ।।

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