Hiren Rajpopat   (HR)
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Joined 2 February 2019


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26 FEB 2023 AT 11:06

कभी देखी नहीं गलतियां ऊनकी,
बेवजह सारे मसले माफ़ किए ।

कुछ यूँ जिदंगी के हिसाब किए,
ख्वाहिशों के महल सारे खाक किए ।

ना हमें स्वर्ग की कोई तलब रही,
ना हमने नर्क जितने पाप किए ।

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13 FEB 2022 AT 10:03

गुमसुम सी रहती हैं जिंदगी की गलियां,
हर शाम मौत वहां मदहोश हो कर आती हैं ।

नीकल जाता है दिन गैरों की खिदमत में यूं ही,
रात की खामोशी में भी नींद कहां आती हैं ?

गुज़र कर वापिस नहीं आता वक्त मगर...
गुज़रे दिनों की यादें हर वक्त आती हैं !!!

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19 JUL 2020 AT 10:10

दरख़्त की शाखों पर पंछियों से तेरे आने तक,
में खिड़की से शाम देखता रहा तेरे आने तक ।

मिटती नही क्यो अब तो खुशबू तेरे लिबास की,
यूं ही महकता रहा हर एक कोना तेरे आने तक ।

बहके से रहते हैं अब तो मयखाने भी तेरी यादों में,
हमने भी टकरा दिये फिर दो जाम तेरे आने तक ।

रुह भी थमी नहीं, सांसे भी रुकी ना, सोचता रहा मैं,
मिलती रही क्यूं बदस्तूर तेरी परछाई तेरे आने तक ।

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14 JUN 2020 AT 18:50

जीते जी कहा खबर पुछता है जमाना ?
जाने के बाद ही लोगों को खबर होती है ।

हाल पुछती नहीं दुनिया जिंदा लोगों का,
यूं ही जनाजे पे बारात तमाम होती है ।

अपनी मौत की अफवाह उड़ा के देख लीजिएगा जनाब,
ग़म बांटने महफ़िल ए समा होती हैं ।

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14 MAY 2020 AT 18:45

किस मोड़ पे ले आया है फलसफा बंदगी का ?
काफिरों की महफ़िल में अपना नाम दर्ज कराए बैठे हैं ।
अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफ़िला जिंदगी का,
सुकुन ढूंढने चले थे, अब तो नींद ही गंवाए बैठे हैं !

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25 APR 2020 AT 19:36

बंजर सी हो चुकी थी दीवारें भी तेरी बेबस इल्तिजा में,
हर कोई झांक रहा था तुझमें, शायद दरारें बहुत थी ।
यूं तो ए जिंदगी.. तेरे सफर से शिकायतें बहुत थी ।
मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुंचे तो कतारें बहुत थी ।

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28 MAR 2020 AT 9:24

You and I.. in this beautiful world,
Laying on the upstairs.
Don't know what to do..Don't know what to do...

You and I.. in this beautiful world,
Behaving like we don't care.
But I know that we do..But I know that we do...

Yes humanity & nature, we care for you.
Yes dear mother earth, we still love you.

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20 MAR 2020 AT 10:18

बिकती नहीं बाजार में दवाइयां यूं ही,
ख़लिश दर्द में छिपे इलाज के उजालों पर ।

भरे पड़े हैं मयखाने गली-मोहल्लों में,
लिखा है जब से दवा ए दिल प्यालों पर ।

ज़ुल्म हर वक़्त होते रहे इश्क के ज़िंदानो में,
मौत को भी तरस आया मर्ज़ी से मरने वालों पर ।

इतनी देर मत करना बेवजह लौटने में कहीं,
के चाबियां भी बेअसर हो जाएं तालों पर ।

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15 MAR 2020 AT 10:04

उस दिन ख़ून बेच के कमाई थी दो रोटीयां,
मेरे अंदर जो शख़्स था वो जाहिर हो चुका है ।

जिसे साथ था रहना वो गाफिल हो चुका,
एक ही ख़्वाब था देखा वो काफ़िर हो चुका है ।

मुख़्तसर जिंदगी का एक ही मसला रहा,
हर इंसान अपनी तरह शातिर हो चुका है ।

दूर ही रखते हैं ख़ल्क़ के तमाशे में खुद को,
मुझमें छिपा अकिद पुराना नाजीर हो चुका है ।

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11 MAR 2020 AT 9:05

खोल दूं जो बांधे थे धागे सारे इबादत में,
के सुन ले वो ख़ुदा भी अर्जी मेरी एक बार ।

तुझे भी मैं लगा लू गले से ए जिंदगी,
गर तु भी जिंदगी सी पेश आए एक बार ।

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