वह खून कहो किस मतलब का , जिसमें उबाल का नाम नहीं ,
वह खून कहो किस मतलब का , जो आ सके देश के काम नहीं ..
वह खून कहो किस मतलब का , जिसमे जीवन ना पानी है,
जो परवश होकर बहता है ,
वह खून नहीं है पानी है...
उस दिन लोगों ने सही - सही खून की कीमत पहचानी थी ..
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मांगी उनसे कुर्बानी थी ,
बोले स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हे करना होगा ,. तुम बहुत जी चुके हो जग में लेकिन आगे मरना होगा ..
आजादी के चरणों में जो ,
जयमाल चढ़ाई जाएगी ,
वह सुनो तुम्हारे शीशों के फूलों से गुथी जाएगी ..
आजादी का संग्राम कहीं ..पैसे पर खेला जाता है ,
यह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है..
यूं कहते-कहते वक्ता की.. आंखों में खून उतर आया ,
मुख रक्त वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया..
हो गई सभा में उथल-पुथल ,
सीने में दिल ना समाते हैं ,
स्वर इंकलाब के नारों के कोसों तक छाए जाते हैं ...
"हम देंगे - देंगे खून " शब्द बस यही सुनाई देते थे ,
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे ,
बोले सुभाष इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है..
लो यह कागज़ है कौन यहां आकर हस्ताक्षर करता है..
इसको भरने वाले जन को सर्वस्व समर्पण करना है अपना तन - मन धन- जन - जीवन भारत मां को अर्पण करना है .
पर यह साधारण पल नहीं आज़ादी का परवाना है
इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्ज्वल रक्त गिराना है ..-
6 DEC 2019 AT 0:17