झूठ के बनाये मीनारों से निकलने में त्तक्लीफ बहुत होती है शायद इसीलिए लोगो ने झूठ में जकड़े रहने की पीड़ा को स्वीकार लिया और सत्य की रोशनी को नकार दिया उन्हें भय था कि सत्य का उजाला उन्हें अंधा न कर दे परंतु वो इस बात से अनभिज्ञ थे की वो झूठ के आश्रय में अंधकार पूर्ण जीवन ही व्यतीत कर रहे है। और सत्य का साक्षात्कार की उनके जीवन को सही दिशा प्रदान कर सकता है।
मृतजीवी पौधे बरगद के, पीपल के या अन्य बड़े पेड़ो पर अपना अधिकार समझते है या स्वार्थ वश रिश्ता रखते हुए उन्ही पेड़ो के द्वारा अपने कार्य सिद्ध करते है और अंततः उन्हें खोखला कर छोड़ दूसरे बड़े पेड़ो की खोज करते है बड़े पेड़ो का छोटे पौधों के प्रति प्रेम, दया एवं आत्मीयता की भावना स्वयं उनके विनाश का कारण बन जाता है अधिकतर मनुष्य मृतजीवी पौधे के समान होते है और बहुत कम बरगद के पेड़ जिन्हें गिराने में हम कोई कसर नही छोड़ते।
दुनिया जैसी ही वैसी ही अच्छी है इसे वेदो में नरकलोक भी कहा गया है, क्या पता ये वही नरक हो जिसकी उलाहना हम दुसरो को देते रहते है क्या पता हम खुद ही नरक की प्रताड़ना सह रहे हो और स्वयं के कर्मो के स्थान पर ईश्वर के ऊपर दोषारोपण कर के स्वयं को ही सांत्वना दे रहे हो।