हिमांशु भावसार   (✍🏻 हिमांशु भावसार 'हिन्द')
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Joined 20 July 2017


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Joined 20 July 2017

विघ्न हरे सब पाप कटे तो, लगता कि दिवाली हैं
जय जय जय श्री राम जपे तो, लगता कि दिवाली हैं
यूँ तो आलोकित होता है, पूरा भारतवर्ष परंतु
अवधपुरी में दीप सजे तो, लगता कि दिवाली हैं

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रामलला तंबू से निकले, खत्म यहाँ वनवास हुआ
मर्यादा पुरुषोत्तम ने पर, बड़ा कठीन आघात सहा
किंतु अब दिन दूर नहीं वो, निर्णय भी दे डाला है
जन्मभूमि पर रामलला का, मंदिर बनने वाला है
सुनो विपक्षी खेमें वालों, सारी राहें छोड़ो तुम
एक जमीं तुमको दे दी है, जाकर माथा फोड़ो तुम
प्यार से तुमको समझाते है, रोकेंगे फिर टोकेंगे
फिर भी बाज़ नहीं आये तो, मिलकर तुमको ठोकेंगे
भय बिन प्रीत नहीं होती, ये रामायण ने सीखलाया
इसीलिये तो बजरंगी भी, सीना तान यहाँ आया
कोई मुल्ला क़ाजी चच्चा, अब तो भौंक नहीं सकता
राम का मंदिर बनने से अब, कोई रोक नहीं सकता

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राष्ट्रवन्दना करने वाली चाह दिखी है मोदी में
भारत माँ के दर्दो की परवाह दिखी है मोदी में
विश्वगुरु हम बन जायेंगे, सबको अब विश्वास हुआ
स्वर्णिम भारत बनने वाली राह दिखी है मोदी में

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सत्य सनातन विश्वगुरु का नवसंवत्सर आया है
भगवा परचम नील गगन में लहर लहर लहराया है

सारी दुनिया को हमने ही जीवन शैली दिखलाई
संस्कार और सभ्यता की परिभाषायें सिखलाई
जहाँ संस्कृत से जन्मी है दुनिया की सारी भाषा
जहाँ जन्म लेने की रहती सारे जन की अभिलाषा
जहाँ राम ने मर्यादा के पथ पर चलना सिखलाया
और कृष्ण ने धर्मयुद्ध को भगवत गीता में गाया
जहाँ तपस्वी ऋषि मुनि ने धर्म ध्वजा को थामा है
और मित्रता में भी सबसे आगे नाम सुदामा है
महाराणा प्रताप शिवाजी स्वाभिमान के पोषक थे
और भगत शेखर के नारे राष्ट्रवाद उदघोषक थे
जहाँ हजारों पदमिनियाँ भी मान बचाने अड़ी रही
जहाँ राष्ट्र अस्मिता हेतु लक्ष्मीबाई खड़ी रही
उस धरती पर भगवा परचम लहर लहर लहराया है
सत्य सनातन विश्वगुरु का नवसंवत्सर आया है

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जीजाबाई के आँचल में, जिसका बचपन बीता था
सौ से ज्यादा युद्ध लड़े थे, सबको जिसने जीता था
मुग़लों के बंदीगृह से जो, बचपन में ही छूट गया
भगवा ध्वज लेकर निकला, स्वराज बनाने जुट गया
दिल्ली से दक्खन तक बजता, जिसका गाजा बाजा था
वीर शिवाजी का बेटा वो, अपना शंभू राजा था

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होली का त्यौहार सिखाता, जीवन में उत्साह रहे
सुख दु:ख मिलकर बाँटे सबके, सबकी ही परवाह रहे
सबसे सदव्यवहार करें हम, राग द्वेष न मन में हो
राष्ट्रहित में चलने वाली, ऐसी सबकी राह रहे

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वो भगवा को चुनौती दे के कहते है कि देखेंगे
मगर वो भूल जाते है कि वर्दी वाले ठोकेंगे
वो घर ही बेचकर भरना पड़ा दंगे का जुर्माना
कभी कहते थे घर घर से यहाँ अफज़ल भी निकलेंगे

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वर्षों से निर्वासित थे जो, स्वप्न अधुरा पूर्ण हुआ
दर दर ठोकर खाने वाले, दिल से देते सभी दुआ
भारत माता बुला रही है, अपने बिछड़े लालों को
मल्हम पट्टी लगा रही है, उनके गहरे छालों को
शुद्धि कर संशोधन आया, चेहरा सबका मुस्काया
किन्तु कुछ लोगों को भी ये, निर्णय रास नहीं आया
बिल फाड़कर दिखा दिया कि मन में बसी बगावत है
हिन्दुस्तानी बोल रहे पर, आओं सबका स्वागत है

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क्या पाया क्या खोया देखो, ऐसी हिस्सेदारी में
हिन्दू हृदय सम्राट रहे ना, शीश झुके लाचारी में
बालासाहेब शर्मिन्दा है, देख रहे ये स्वर्ग से
वन्दे मातरम् भूल गये वो, गठबंधन की यारी में

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काश कि जनता भूखी प्यासी, और नहीं रहने पाये
सत्ता भी लोभी की दासी, और नहीं रहने पाये
काश किसानों के मुरझायें, चेहरे फिर से खिल जाये
काश गरीबो के नंगों के, कपडे फिर से सिल जाये

काश पेट में कोई भी बेटी अब मरने न पाये
दहेज़ की खातिर कोई भी बेटी अब जलने न पाये
जात-पात मज़हब के झगडे, और नहीं होने पाये
काश कराची की छाती पर, अमर तिरंगा लहराये

जिस दिन भारत भू का जन जन, वन्दे मातरम् गायेगा
सच कहता हूँ उस दिन निश्चित, राम राज्य आ जायेगा

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